SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुण्य किये हों वे तो उसे भुगतने ही पडते हैं । इसीलिये कहा है कि - "कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि” किये हुए कर्मो से कोई छुटकारा नहीं है , “कृतं कर्म अवश्यमेव भोक्तव्यम्” किये हुए अथवा उपार्जित निकाचित कर्म तो अवश्य भोगने ही पडते हैं। कृतकर्म भोगे बिना छुटकारा ही नहीं है, अतः तुम्हारी बाँधी हुई गति तो तुम्हें ही भोगनी होगी। देव - भगवन् ! इस गति में जाना निश्चित ही है, मैं इसे टाल नहीं सकता हूँ, तो इस गति में जाकर मुझे क्या करना होगा जिससे पुनः मेरा उत्थान हो सके? भगवन् ! कोई उपाय तो बताईये। मुनि - हाँ, भाग्यशाली! एक उपाय है, देखो! तुम अपने अवधिज्ञान का उपयोग करके, अभी ही अपने भावी उत्पत्ति स्थल पर जाओ और पर्वतमाला की खाईयों, श्रृंखलाओं, गिरिकन्दराओं तथा बडी बडी शिलाओं पर चारों ओर नवकार महामंत्र लिख दो। जितना हो सके उतना चारों ओर लिख दो। वृक्षों के बडे बडे तनों पर भी लिख दो। नीचे एक और बन्दर का, दूसरी ओर तुम्हारा देव का और मध्य में मुनि की आकृति बना लो। अभी तो तुम देव हो, तुम्हारे पास वैक्रिय शक्ति है, सब कुछ है, अतः अभी तो तुम सब कुछ कर सकोगे - और हाँ, इतना करने के पश्चात अब इस भव के शेष काल में तुम सतत नवकार का स्मरण - जाप करते रहो । देव - हे भगवन् ! यह सब कर लेने के पश्चात इससे किस प्रकार लाभ होगा? यह भी कृपया बता दो । मुनि - देखो भाग्यशाली! तुम जब बंदर होकर उस पर्वतमाला में फिरोगे, तब वहाँ नवकार महामंत्र, बंदर तथा देव आदि का चित्र देखकर तुम्हें आश्चर्य होगा, तुम विस्मित होओगे चारों ओर यही - एक ही वस्तु तुम्हे दिखाई पडेगी - अतः तुम चिन्तन करोगे कि यह सब क्या है? इस से बन्दर के भव में तुम्हें जाति स्मरण ज्ञान अर्थात्, पूर्वजन्मों का स्मृति ज्ञान होगा। वह ज्ञान होते ही तुम्हे अपना देव भव प्रत्यक्ष दिखाई देगा। यह नवकार जिसकी आराधना तुमने यहाँ इस भव में सतत की होगी, वह तुम्हारे स्मृति पटल पर स्पष्ट - जाप आदि करोगे, जिससे नवकार के माध्यम से पुनः तुम्हारा उद्धार संभव होगा। देव स्थिरतापूर्वक सब कुछ समझ गया - उसे आशा बँध गई, बन्दर के भव में से भी पार उतरने का उपाय उसकी समझ में आ गया। समझने के पश्चात 56
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy