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पत्र लिखे जाते हैं तब उन में लिखा जाता है कि हमारे पिताश्री/पुत्रादि - का स्वर्गवास हुआ है । संसार के व्यवहार के अनुसार सगे-संबंधी-स्नेहीजन जब प्रत्युत्तर देते हैं तब क्या लिखते हैं? वे शब्द प्रायः इस प्रकार होते हैं -आपका पत्र प्राप्त हुआ, आपके पिताश्री का स्वर्गवास हुआ है यह वास्तव में बहुत ही बुरा हुआ है - सुनकर हमें अत्यन्त दुःख हुआ है। अब विचार करो- जब आप स्वर्गवास लिखते हो, चारों ही गतिओं में सर्वोत्तम सद्गति वाचक स्वर्गवास शब्द का प्रयोग करते हो, उसके प्रत्युत्तर में स्नेही-स्वजन उत्तर देते हैं कि बडा ही बुरा हुआ है - बहुत दुःख हुआ है, यह और ऐसे ही उत्तर उचित है ? हाँ, यदि आपने नरकवास अथवा तिर्यंचवास लिखा होता और सामनेवाले अत्यन्त दुःख होने की बात लिखते, तो यह बात गले उतरने जैसी थी, परन्तु जब आप उत्तम गति सूचक शब्द-स्वर्गवास का प्रयोग करते हो, तो वे ऐसा प्रत्युत्तर क्यों देते हैं कि बुरा हुआ - दुःख हुआ आदि । इसके स्थान पर तो उन्हें लिखना चाहिये कि आपके पिताश्री का स्वर्गवास हुआ है - यह जानकर अत्यन्त आनंद हुआ, प्रसन्नता हुई, सचमुच ही बहुत ही अच्छा हुआ कि आपके पिताश्री स्वर्ग में जाकर बसे है - आदि - परन्तु संसार में ऐसा लिखना किसी को स्वीकार्य नहीं हैं । ऐसा व्यवहार प्रचलित नहीं है और यदि कोई ऐसा कटु सत्य लिख दे तो बेचारा मूर्ख ही सिद्ध होगा ।
यदि आप स्वर्गवास लिखते हो और उत्तरदाता - इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त करने के बजाय ऐसा ही लिखता है कि बहुत ही बुरा हुआ तो कभी उत्तरदाता को ही पूछकर तो देखो कि भाई! आप ऐसा क्यों लिखते हो? जब हम स्वर्गवास हुआ है - ऐसी सुंदर भाषा लिखते हैं, हमारे संबंधी की सद्गति होने की बात लिखते हैं, फिर भी आप ऐसा क्यों लिखते हो कि बुरा हुआ, खेद हुआ? कदाचित उत्तर दाता आपके ऐसे प्रश्न पर कह देगा - तेरे पिताश्री स्वर्ग में कैसे जा सकते है? तू तो कल का बालक है, तेरे पिता तो मेरे मित्र थे। हम दोनों साथ साथ खेलते-उठतेबैठते, घूमते-फिरते और खाते-पीते थे। मैं तुम्हारे पिताजी से सुपरिचित हूँ। वे क्या क्या करते थे । कहाँ कहाँ जाते थे । किस होटल में, किस क्लब में वे क्या करते थे । आदि सभी बात मैं भली प्रकार जानता हूँ, क्योंकि मैं भी अनेक स्थानों पर उनके साथ था, अतः उन्हें अच्छी तरह जानता हूँ। दुनियाभर के सैंकडों पाप करनेवाले कभी स्वर्ग में जा सकते हैं क्या? ये तो नरक में जाने चाहिये थे, क्योंकि इनके पाप बहुत अधिक थे। तूं पुत्र होकर ऐसा लिखता है कि - मेरे पिताश्री का
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