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(२) मनुष्य गति के योग्य आश्रव -
निर्दम्भः सदयो दानी, दान्तो दक्षः सदा ऋजुः।
मर्त्ययोनेः समुद्भूतो, भविता च पुनस्तथा ॥ दंभरहित, माया कपट न करनेवाला, दयालु, दानवीर, उदार स्वभाववाला हो, इन्द्रियों को वश में रखनेवाला जितेन्द्रिय, समझदार सज्जन और सरल स्वभाववाला जीव हो, तो उसे विशेषतः मनुष्यगति में से आया हुआ समझें और ऐसे ही लक्षण पुनः दिखाई पडते हो, तो पुनः वह जीव मनुष्य गति में ही जाएगा - ऐसा समझे।
अल्पारंभपरिग्रहत्वं स्वभावमार्दवार्जवं च मानुषस्य ॥ तत्त्वार्थसूत्र ॥
पयई इतणुकसाओ, दाणरुई मज्झिमगुणो आ ॥ कर्मग्रंथ ॥
अत्यन्त अल्प जीवनाशक आरंभ समारंभ करनेवाला हो, स्वभाव से विनयी-विनम्र और अत्यन्त सरल ऋजु स्वभाव वाला हो, निर्दोष कपट रहित हो, तथा जिसके क्रोधादि कषाय सर्वथा क्षीण हो गए हो, ऐसा अल्प कषायवाला जीव, दानादि पुण्य कार्य करने कि रुचिवाला जीव, क्षमादि भाववाला, मृदुतादि मध्यम गुणवाला, जिन पूजन भक्ति में रत रहनेवाला, धर्मध्यान करनेवाला किसी के साथ, अन्याय न करनेवाला, न्यायप्रिय रहनेवाला, न्याय नीतिपूर्वक धनोपार्जन करनेवाला, यतनापूर्वक जीवरक्षा करनेवाला, साधु-संतों का आदर सत्कार करनेवाला, सेवा करने वाला, भद्रिक परिणामवाला, परनिंदा न करनेवाला, परोपकार परायण ऐसे अनेक प्रकार के लक्षणों से युक्तजीव प्रायः मनुष्यगति का उपार्जन करके - मनुष्यायु बाँधकर मनुष्य के रूप में उत्पन्न होता है।
(३) तिर्यंचगति योग्य आश्रव हेतु . .
माया-लोभ-क्षुधा-लस्य-बह्याहारादिचेष्टितैः। _ तिर्यग्योनेः समुत्पत्तिं ख्यापयत्यात्मनः पुमान्।।
तीव्र माया कपटमय वृत्तिवाले, लोभी-लालची, तीव्र क्षुधा, आलस्य और प्रमाद वाले, अत्यन्त आहार करनेवाले, तीव्र आहार संज्ञावाले ऐसे लक्षण जिन में दिखाई पडते हो, उन्हे, तिर्यंच गति में से, आए हुए और पुनः तिर्यंच गति में जानेवाले समझें ।