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________________ ५०%-५०% सत्य-असत्य दोनों ही पक्ष होते हैं, अतः कुछ भी शत प्रतिशत सच्चा नहीं कहा जा सकता है। भविष्यवाणियाँ सत्य भी सिद्ध हो सकती है और न भी हो सकती है। इस प्रकार अनुमानों से भी भविष्यवाणी करके कहने का हो, तब भी भूतकाल की गति तथा भविष्य काल की गति डंके की चोट नहीं बता सकते, जब कि कल्पसूत्र जैसे शास्त्र शिरोमणि ग्रंथ में लक्षण के आधार पर और पूज्य वाचक मुख्य उमास्वातिजी महाराज ने स्वरचित तत्त्वार्थाधिगम सूत्र में लक्षण प्रवृत्ति तथा कर्म के आधार पर जीवों की गति बताई है जिसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकारहै (१) नरकगति के योग्य आयुष्य बंध के आश्रव - . . सरागः स्वजनद्वेषी, दुर्भाषी मूर्खसंगकृत् ।। शास्ति स्वस्यगता यातं, नरो नरकवर्त्मनि ।। । अर्थात्, तीव्र रागवाला, स्वजन-संबंधी पर द्वेषवाला, अपशब्दयुक्त गंदी भाषा बोलनेवाला तथा मूर्ख की संगति करने वाला - ऐसे अशुभ लक्षण इस बात का सूचक है कि वह नरक गति में से आया है, और पुनः नरक गति में ही जानेवाला है। इस प्रकार कल्पसूत्र की टीका में विनयविजयजीमहोपाध्यायजी म. फरमाते हैं। नरक गति में जाने के लिये अन्य आश्रवद्वार तत्त्वार्थकार और कर्मग्रंथकार इस प्रकार बताते है। बह्मवारंभ परिग्रहत्वं च नारकस्यायुषः।। तत्त्वार्थसूत्र ॥ बंधइ निरयाउं महारंभपरिग्गहरओ, रुद्दो। कर्मग्रंथ ॥ अत्यन्त अधिक प्रकार का आरंभ समारंभ करने से जितने अधिक प्रमाण में जीव विराधनाएँ होती हो, महापरिग्रह रखने से, तीव्र क्रोधादि कषाय करने से, रौद्रध्यान की परिणतिवाले, कृष्ण लेश्यावाले जीव, हिंसादि पापारंभ की प्रवृत्ति में रत रहनेवाले, पंचेन्द्रिय जीवों का वध-हिंसादि करनेवाले, मद्य-मांसादि का सेवन करनेवाले जीव, अत्यन्त विषयलोलुप जीव, घोर मिथ्यात्वी, मुनिघातक, महाचोर, व्रतघातक, रात्रिभोजन करनेवाले, गुणीजनों की निंदा करनेवाले, तीव्र मत्सर बुद्धिवाले जीव प्रायः नरकगति उपार्जन करते हैं और नरकगति का आयुष्य बाँधकर नरक में जाते हैं।
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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