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अंतिम पाँचवे स्वस्तिक में नरक गति के नारकी जीवों का गमन-संचरण बताया गया है। इस में कहा गया है कि नारकी जीव मरकर तिर्यंच गति में पशुपक्षी के रुप में उत्पन्न होते है, कोई विरले ही मनुष्यगति प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार नरक के जीव भी मात्र दो ही गतियों में जाते है। इन दो के सिवाय वे कहीं नही जाते। इस प्रकार चारों ही गतियों के जीवों के चार गतियों में गमनागमन, गतिआगति संबंधी अटल नियम इस प्रकार शास्त्रो में वर्णित है। ये नियम, अपरिवर्तनशील है। इन्हीं नियमों के अनुसार चारों ही गतियों में गमनागमन चलता रहता है। संसार चक्र में जीवों का एक गति से दूसरी गति में, एक जाति से दूसरी जाति में एक भव से दूसरे भव में इन नियमों के अनुसार ही सतत परिभ्रमण चलता रहता है।
गतिसूचक हेतुओं और प्रवृत्ति के आधार पर गतियाँ - .
जीव की गति आगति उसके स्वयं के कर्म के आधार पर है, किसी अन्य के हाथ में नहीं है। कोई उपरवाला या अन्य कोई नियंता नही है जो संसार का नियंत्रण करता हो। जीवों ने जैसे शुभ-अशुभ कर्म किये हो तदनुसार ही जीवों की गति-आगति होती है। दंडक प्रकरण की ३४ वी गाथा में स्पष्ट कहा गया है कि “सव्वे उववज्जंति निय निय कम्माणुमाणेणं" - अर्थात् सभी जीव स्व-स्व कर्मानुसार उत्पन्न होते है - जन्म लेते हैं; आते हैं, और जाते हैं। अतः जीव की गति उसके कर्मानुसार होती है। इस में कोई भी अन्य कारण नही बनता। यह सिद्धान्त स्वीकार करने में ही सम्यक्त्व है - सत्यता है । । - कोई ज्योतिषि-ब्राह्मण-पंडित अथवा हस्तरेखाशास्त्री आदि भी पूछने पर नहीं बता सकते हैं कि जीव किस गति में से आया है और किस गति में जाने वाला है। हाथ या पाँव की रेखाएँ देखकर भी कोई ज्योतिषि यह निर्णय नहीं दे सकते हैं कि इस गति के विषय में निश्चित रुप से तो क्या परन्तु सामान्यरुप से भी कुछ नहीं बता सकते हैं | हाथ की, आयुष्य रेखा जहाँ समाप्त हो जाती है वहीं तक किसी ज्योतिषि का ज्ञान उपयोगी होता है। बस, आयुष्य रेखा के अनुसार अंगुली की गणना करके उतने वर्षों तक आयुष्य होने की बात वे कह सकते हैं, परन्तु यह भी अनुमान है। ज्योतिष अथवा हस्तरेखा में अनुमान शास्त्र अधिक निश्चित कार्य करता है, अथवा अनुमान अधिक काम करता है । प्रश्न अवश्य खडा होता है। अनुमान में
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