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________________ है, नरक में भी जा सकता है, तिर्यंच गति में जाकर पशु-पक्षी के रुप में भी जन्म ले सकता है, और पुनः मनुष्य भी बन सकता है। इस प्रकार मनुष्य चारों ही गतियों में जन्म ले सकता है। ૨.મનુષ્યનું ચારે ગતિમાં ૩.તિર્થન્ચનું ચારે ગતિમાં ગમન મનુષ્ય સ્વ ગમન ૧.ચાર ગતિ 0) તિર્થક્ય નરક ૪ દેવનું બ ગતિમાં | ગમન પ.નરકનું બે ગતિમાં समन. तिर्यंच के जीवों का विचार करें तो तीसरे स्वस्तिक में बताई गई तीरवाली रेखाएँ देखने से पता चलेगा की तिर्यंच गति के पशु-पक्षी भी मृत्यूपरान्त मनुष्य में, देव में, नरक गति में और अंत में तिर्यंच मरकर तिर्यंच गति में पुनः भी जा सकता है अर्थात् पुनः पशु-पक्षी आदि के रुप में उत्पन्न हो सकता हैं । चौथे स्वस्तिक में देवगति बताते हुए कहा है कि देवगति के देवता मर कर तिर्यंच गति में पशु-पक्षी के भव में उत्पन्न होते हैं, अथवा मनुष्य गति में जाते है। वे इस प्रकार मात्र दो ही गतियों में जन्म लेते है। उन में भी ९९% तो तिर्यंच गति में ही जाकर उत्पन्न होते हैं। कोई विरले ही मात्र मनुष्य गति में उत्पन्न होते है। इसीलिये मानवजन्म को अत्यन्त दुर्लभ बताया गया है, मनुष्य गति को सर्वोत्तम सर्वश्रेष्ठ गति बताई है। देवगति को भी सर्वोत्तम - सर्वश्रेष्ठ गति न बताने का कारण यही है कि देवगति में से मोक्ष-गमन संभव नहीं है। एक मात्र मनुष्यगति में से ही मोक्ष में जा सकते हैं। इसीलिये तो इसी गति की प्राप्ति श्रेष्ठ है, इसीलिये मनुष्य जन्म उत्कृष्ट - सर्वश्रेष्ठ जन्म है, अमूल्य एवं दूर्लभ जन्म है। देवलोक के देवतागण भी मनुष्य जन्म के लिये तरसते रहते हैं । 46
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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