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वे सभी इन चार गतियो में ही रहते हैं । देवगति में चार निकाय के देवता निवास करते हैं। इसे देवगति - देवलोक, ऊर्ध्वलोक, स्वर्ग के नाम से भी जाना जाता है। देवलोक में नवकार की आराधना के विषय में जो विचार हम पूर्व में कर चुके हैं, वही विचार यहाँ देवगति में समझें, क्योंकि देवगति में या देवलोक में जीव तो वही के वही ही है। देवता तो वे ही है। देवगति गतिसूचक है, देवलोक क्षेत्रसूचक शब्द है - बस अन्तर इतना ही है । देवगति में उच्चतम देवलोक के रुप में पाँच अनुत्तर देवलोक गिने जाते हैं जिनकि गणना कल्पातीत देवलोक में होती है। इन में उच्चतम कोटि के सर्वोच्च देवता निवास करते हैं, जिनकी ३३ सागरोपम की उत्कृष्ट आयु होती है । (१) विजय, (२) वैजयन्त ( ३ ) जयन्त (४) अपराजित और (५) सर्वार्थ सिद्ध - इस प्रकार के पाँच नाम अनुत्तर स्वर्ग के विमानों के है । यहाँ उत्पन्न होने वाले जीव एकावतारी होते है, अर्थात्, यहाँ से उतरकर मनुष्य गति का एक भव करके वहाँ से सीधे मोक्ष में चले जाते हैं । ऐसी उत्कृष्ट कक्षा के देवता सम्यग्दृष्टि होते हैं। ये देवता भोग-विलास में आसक्त नहीं होते हैं, परन्तु तत्त्वचिंतन में अपना
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