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कालनिर्गमन करते रहते है, अर्थात् उनकी चिन्तन साधना में सम्यग् श्रद्धा में नवकार ही मुख्यविषय होता है। इस कक्षा के देवताओं को प्रमादादि सेवन करना तनिक भी पसंद नहीं आता। निद्रा तो देवगति में होती ही नहीं है, अतः सम्यग्दृष्टि देवता नवकार की साधना कितनी सुंदर करते होंगे ? अनुत्तरोववाईय (अनुत्तरोपपातिक) नामक अंगसूत्र में ऐसे देवताओं का बडा ही अनुठा वर्णन है ।
नरकगति भी नरक क्षेत्र में अधोलोक शब्द से सूचक है। नरक गति के नारकीय जीव इस अधोलोक में निवास करते है । वहाँ भी नवकार की साधना तो चल ही रही है - इसकी चर्चा हम पूर्व में कर चुके हैं । मनुष्य गति का क्षेत्र मात्र ढाई द्वीप पर्यन्त ही सीमित है। इन ढाई द्वीप के मनुष्यों की संपूर्ण जनसंख्या मनुष्यगति में समा जाती है। क्षेत्र भौगोलिक शब्द है । क्षेत्र के सर्व जीवों का वाची शब्द गति है। मनुष्य गति में भी सदा काल नवकार महामंत्र की साधना चलती रहती है । तिर्यंच गति में एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के सभी जीवों का समावेश होता है। देव नारक और मनुष्यों के सिवाय जगत की समस्त जीवसृष्टि इस तिर्यंच गति में गिनी जाती है। कीडे, मकोडे, मक्खी, मच्छर, अमीबा, केंचुए आदि तथा सभी प्रकार के पशु-पक्षी आदि सभी जीवों की गति की दृष्टि से तिर्यंच गति में गणना होती है। अतः एकेन्द्रिय जाति के पृथ्वीकाय, अपकाय, तेऊकाय, वायुकाय, और वनस्पतिकाय इन सभी स्थावर जीवों की गणना भी एकेन्द्रिय जाती में होती है। विकलेंद्रिय के द्वीन्द्रिय, तेइन्द्रिय, और चतुरीन्द्रिय जीव भी तिर्यंच गति में गिने जाते है । द्वीन्द्रिय में केंचुए, अमीबा, कृमि, शंख, शीप आदि की गणना होती है | तेइन्द्रिय में चींटी, मकोडे, पिल्लू, धनेरा, जू, लीख, खटमल आदि का समावेश होता है। चतुरिन्द्रिय में मक्खी, मच्छर, भ्रमर, टिड्डी आदि जीवों की गणना होती है। यहाँ तक अर्थात् एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय तक के जीवों में नवकार बिल्कुल ही संभव नहीं हैं। साथ ही असंज्ञि पंचेन्द्रिय जीवों के लिये भी नवकार संभव नहीं है। मात्र संज्ञि समनस्क पर्याप्ता पंचेन्द्रिय जीव जिन में गाय-भैंस - घोडा - हाथी- ऊँट - बैल आदि पशु हैं तथा जलचर, स्थलचर, खेचर, हैं, अथवा तो पक्षी जैसे कौवा - कबूतर - तोता - चील आदि जीव है वहीं तक नवकार की साधना संभव है ।
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सामान्य विचार करें तो कदाचित यह बात गले न भी उतरे, परन्तु तिर्यंचगति के अनेक जीव नवकार की साधना से तिर जाने के उदाहरण शास्त्रों में उपलब्ध है। निमित्त मिल जाए, तो ये जीव भी प्राप्त कर जाते हैं - कल्पसूत्र
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