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________________ १८०० योजन का विस्तार तिर्च्छा लोक का क्षेत्र है। इस समतल भूमि के स्तर पर विस्तृत असंख्य द्वीप समुद्र है । इन में मात्र मध्य के ढाई द्वीप ही मानवबस्ती के क्षेत्र हैं। इसके बाहर के क्षेत्र में किसी प्रकार की मानवबस्ती नहीं है । ढाई द्वीप में बीच में दो समुद्र है। प्रथम जंबूद्वीप, फिर क्रमशः एक समुद्र और एक द्वीप इस प्रकार उत्तरोत्तर दुगुने दुगुने माप के है । અધેલેક–સાન નરરૂ પૃથ્વીએ આદિ સાત નરકનાં નામે – ૭ રાજલાક પ્રમાણ અધાલાક ૧૮૦૦ યે જ જન્ ૯૦૦ યેાજન તિર્થ્યલેક ૯૦૦ પેજન ૯૦૦ (જન નીચે અધેલાક નરક ૧. ધર્માં ૨. વંશા ૩. શૈલા ૪. અંજના પ. રા ૬. મા ૭. માધવતી નિર્ણયો ૨ .... મેરુ પર્યંત જ્યોતિષ્મ મળસૂર્ય-ચંદ્રાદિ અસખ્ય દ્વીપ સમુદ્રો રત્નપ્રભા ૧ લી નરક શરાપ્રભા ૨ ૭ નરક વાલુક્રપ્રભા ૩ છ તરફ પપ્રભા 3 ૪ થી નરક ધૂમપ્રભા પાંચમી નરક તમ પ્રભા ૬ ઠ્ઠી નરક મહ તમ મલા G ૭ મી નક ૩ ૮+૮+૪+૨+9 તાવ યોનન+૨+૪+૮+૮=૪ તાવ યોનન इस प्रकार वृत्ताकार घूमती हुई स्थिती में एक द्वीप, एक समुद्र इस प्रकार असंख्य द्वीप समूह हैं जिन में एक से दूसरा दुगुने योजन प्रमाण विस्तारवाला है। उन में बीच ढाई द्वीप ( और दो समुद्रों) का माप जैसा कि ऊपर दिखाया गया है - ४५ लाख योजन है। इस ढाई द्वीप क्षेत्र में मनुष्यगति के मनुष्य और तिर्यंच गति पशु-पक्षी दोनो ही गति के जीव साथ साथ रहते है। ढाई द्वीप के बाहर मात्र तिर्यंच गति के पशु-पक्षी ही रहते हैं । वहाँ मनुष्य नहीं होते हैं । ढाई द्वीप में पुष्करार्ध 1 34
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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