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नहीं है। आकाश लोकक्षेत्र से भी बाहर है इसलिये इसे अलोकाकाश कहते हैं । चौदह राजलोक के भीतरी आकाश को लोकाकाश कहा जाता है। इस जगत में जो कुछ भी है वह इस चौदह राजलोक के परिमित क्षेत्र तक ही सीमित है। (१) धर्मास्तिकाय, (२) अधर्मास्तिकाय, (३) आकाशास्तिकाय, (४) पुद्गलास्तिकाय और (५) जीवास्तिकाय ये पाँचों ही जिन्हें हम पंचास्तिकाय के नाम से जानते हैं ये सभी इसी लोकक्षेत्र में हैं। लोकक्षेत्र से बाहर कुछ भी नहीं है । ' સમસ્ત બ્રહ્માંડમાં નવકારનું સતત સ્મરણ
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કિલ્બિષિક પર સ્થિર જ્યોતિષ્ઠ - समुद्र
નરક ૧
व्यतर ભવનપતિ
नर७२.
નરક ૩
નરફ૪
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નરક ૫
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125"
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14.
MANTRA
11सजाडीः
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