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________________ अवस्थाओं की ही बनती हैं । इस प्रकार देखने पर एक प्रतिमा में अरिहंत और सिद्ध दोनों ही स्वरुपों के दर्शन होते हैं । सदा के लिये संसारी अवस्था - सदेह अवस्था के अंतिम दर्शन भी अंतिम देहाकृति से ही होने वाले हैं और दूसरी महत्व को बात यह है कि जिस अंतिम देहावस्था में रहकर देह का त्याग करते हैं वही आकृति से मोक्ष में स्थिर रहते हैं । यदि वे खडे-खडे (जिन मुद्रा) कायोत्सर्ग मुद्रा में देह का त्याग करते हैं तो उसी जिनमुद्रा में आत्म-प्रदेश का पुँज पिंड सिद्धशिला पर रहता है और यदि पद्मासनस्थ अवस्था में बैठे बैठे देह का त्याग करते हैं तो आत्म-प्रदेश का पुँज-पिंड बैठी हुई अवस्था में उतनी ही अवगाहना में रहता है, अतः मूर्तिप्रतिमा सिद्धावस्था स्वरुप में भी स्वीकार्य है । इनके सिवा सिद्धात्मा की तो कोई आकति ही नहीं होती है । सिद्ध की देहरहित अवस्था होती है । ये रहस्य महत्वपूर्ण है । इस स्वरुप में जिनप्रतिमा के दर्शन-वंदन-पूजन की भावना है - इन हेतुओं को समझना चाहिये । वीतराग भाव की प्रतिमा - प्रशमरसनिमग्नं दृष्टियुग्मं प्रसन्नम् । . वदनकमलमऽकः कामिनी संगशून्यः ॥ करयुगमपि यत्ते शस्त्रसंबंधवंद्यम् । ... तदसि जगति देवो वीतरागस्त्वमेव ॥ मंदिर में प्रभु समक्ष बोली जानेवाली यह प्रभुस्तुति इस भाव की प्रतीक है कि हे भगवान् ! आपके दोनों ही नेत्र प्रशांत रस से भरे हुए हैं, आप प्रशांतरस में निमग्न हो, आपके नयन प्रसन्न हैं, आपकी गोद में कोई कामिनी भी नहीं है. कामिनी-स्त्री के संसर्ग-स्पर्श से भी आप दूर हैं, और आपके दोनों हाथ शस्त्र संबंध रहित देखता है, अतः इस समस्त जगत में सच्चे-यथार्थ वीतराग एक मात्र आप ही हो। संसार में स्त्री राग का प्रतीक है और द्वेष का प्रतीक शस्त्र-अस्त्रादि है यह बात सर्व विदित है, जग प्रसिद्ध है, प्रत्येक को स्वीकार्य है, कोई निषेध नहीं कर सकता है । इतर मूर्तिया स्त्री, शस्त्रादि के संग-युक्त दिखाई देती है क्यों कि जिनकी मूर्ति है उनका जीवन ही वैसी प्रधानता वाला था, अतः उस राग-द्वेष की प्रधानता को उनकी मृत्यु के पश्चात भी उनकी मूर्ति के साथ स्थायी रुप से स्थापित कर रखी है । इन राग-द्वेष के प्रतीकों से वे भगवान भी राग-द्वेष वाले कहलाएंगे । वे वीतराग 438
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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