________________
केश रोम श्मश्रु नखा अरिहंताजी, वाधे नहीं कोई काल भगवंताजी ||४|| कांटा पण उंधा होय अरिहंताजी, पंच विषय अनुकूल भगवंताजी । षट्ऋतु समकाले फळे अरिहंताजी, वायु नहीं प्रतिकूल भगवंताजी || ५ |
पाणी सुगंध सुर कुसुमनी अरिहंताजी, वृष्टि होय सुरसाल भगवंताजी । पंखी दीये सुप्रदक्षिणा अरिहंताजी, वृक्ष नमे असराल भगवंताजी || ६ || जिन उत्तम पद पद्मनी अरिहंताजी सेवा करे सुरकोडी भगवंताजी । चार निकायनां जघन्यथी अरिहंताजी, चैत्य वृक्ष तेम जोडी भगवंताजी ॥७॥
वाणी के ३५ गुण :- सर्वज्ञ, केवलज्ञानी अतिशयवान् तीर्थंकर परमात्मा समवसरण मरशें बिराजमान होकर देशना देते हैं, तब परमात्मा की वाणी भी ३५ प्रकार के विशिष्ट गुणों से युक्त होती है। वे ३५ गुण संक्षिप्त में इस प्रकार हैं :
-
१) संस्कारकत्वम् - संस्कृतादि लक्षणों से युक्त २ ) औदात्यम् - उच्च स्वर से बोली जानेवाली ३) उपचारवरीलता - ग्रामीणता का अभाव है जिसमें ऐसी ४) मेघध्वनीघोषत्वम् • मेघ की तरह गंभीर शब्द - ध्वनीयुक्त ५ ) प्रतिनाद युक्त प्रतिध्वनित होने वाली ६) दाक्षिणत्व - सरलता से युक्त ७) उपनीत रागत्वम् - मालकोश आदि रागों के स्वरवाली ८) महार्थता - महान् अर्थवाली ९) अव्याहतत्वम् - पूर्वापर वाक्यों के और अर्थ के विरोध रहित १०) शिष्टत्वं - इष्ट सिद्धान्त के कथन तथा वाक्य की शिष्टता - सभ्यतासूचक ११) संशयरहित - संदेह - संशय रहित १२) निराकृतान्योत्तरत्व अन्य के दूषणों से रहित १३ ) हृदयंगम् - हृदय को आनंद देनेवाली १४) मिथसाकांक्षता - परस्पर वाक्य तथा पदों की सापेक्षता रखनेवाली १५ ) प्रस्तावौचित्य - देश - काल का अनुसरण करनेवाली १६) तत्त्वनिष्ठता वस्तु-पदार्थ स्वरूप को दिखानेवाली १७) अप्रकीर्ण प्रसृतत्व - संबंध और विस्तार से रहित तथा निरर्थक विस्तार के अभाववाली १८) स्वश्लाघाऽन्य - निन्दतारहित - स्व प्रशंसा और पर निंदा रहित १९) आभिजात्य - वक्ता की महान् कुलीनता का सूचन करनेवाली तथा प्रतिपाद्य विषय की भूमिका का अनुसरण करनेवाली २०) अतिस्निग्ध मधुरत्व - घी की तरह अति स्निग्ध और गुड़ की भाँति मधुरता से युक्त २१ ) प्रशस्यता प्रशंसनीय २२) अमर्मवेधिता - अन्य के मर्म को प्रकट न करनेवाली २३) औदार्य - तुच्छता रहित उदार, कथनीय अर्थ की उदारतावाली २४) धर्मार्थ प्रतिबद्धता - धर्म और अर्थ से युक्त - संबंधवाली २५) कारकादिअविपर्यास - कारक, काल, वचन, लिंग आदि के विरोध रहित २६ ) चित्रकृत्व - निरन्तर आश्चर्य उत्पन्न
431
-
-
-
-