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________________ शाखाओं को झुकाते हैं, मानों नमस्कार भाव प्रकट न करते हो! पुष्पों की वृष्टि करके प्रभु के आगमन पर हर्ष प्रकट करते हैं। १२) देवदुंदुभि नाद :- देवतागण आकाश में देवदुंदुभि बजाते हैं जिसका नाद भुवन व्यापी होता है। १३) सुखाकारी वायु :- दैविक शक्ति से चारों ओर सुंदर, शीतल सभी को अनुकूल, सुखाकारी वायु प्रवाहित होता है । १४) शकुन :- चारों ओर पक्षीगण मधुर ध्वनि से गाते हुए प्रदक्षिणा करते हैं। १५) सुगंधित जल वृष्टि :- देवतागण चारों ओर सुगंधित जल-पानी की मंद-मंद वृष्टि करते रहते हैं। १६) पुष्पवृष्टि :- व्यंतर देव चारों ओर पंचरंगी पुष्पों की वृष्टि करते हैं। १७) केश आदि का न बढ़ना :- दीक्षा लेते समय पंचमुष्टि लोच कर लेने के बाद भगवान के दाढ़ी-मूंछ-केश (बाल) रोम तथा नखादि कभी भी बढ़ते नहीं हैं। . १८) करोड़ों देवतागण :- “जघन्यतः कोटि संख्यास्त्वां सेवन्ते सुराऽसुरा।” - कम से कम करोड़ देवता प्रभु की सेवा करते हैं। चारों ही निकाय के कुल एक करोड़ देवता कम से कम (जघन्य से) प्रभु के साथ रहते हैं । १९) सर्वऋतु अनुकूल :- प्रभु के विहार काल में सभी ऋतु एक साथ और वे भी अनुकूल रूप से फलित होती हैं। इस प्रकार देवतागण १९ अतिशयों की रचना करके परमपिता परमात्मा की अद्भुत भक्ति करते हैं। भक्ति करने के लिये प्रभु के निर्देशन की कोई आवश्यकता ही नहीं रहती है। प्रभु के बिना निर्देशन से स्वेच्छापूर्वक देवतागण अपना भक्तिभाव प्रकट करने हेतु अतिशयों की रचना करते हैं। ___ पद्मविजयजी महाराज ने भगवान नेमिनाथ के स्तवन में इन १९ अतिशयों का विशद वर्णन प्रस्तुत किया है :निरख्यो नेमि जिणंदने अरिहंताजी, राजीमती को त्याग भगवंताजी। . ब्रह्मचारी संयम ग्रह्यो अरिहंताजी, अनुक्रमे थया वीतराग भगवंताजी ।।१।। चामर चक्र सिंहासन अरिहंताजी, पादपीठ संयुक्त भगवंताजी । छत्र चाले आकाशमां अरिहंताजी, देव दुंदुभि वर युत्त भगवंताजी ।।२।। सहस जोयण ध्वज सोहतो अरिहंताजी, प्रभु आगळ चालंत भगवंताजी । कनक कमल नव उपरे अरिहंताजी, विचरे पाय ठवंत भगवंताजी ।।३।। चार मुखे दीये देशना अरिहंताजी, त्रण गढ झाक झमाल भगवंताजी । 430
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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