________________
उपरोक्त श्लोक के आधार पर उपलब्ध है। १) धर्मचक्र :- अरिहंत परमात्मा जब विहार करते हैं तब देवतागण आकाश में सूर्यमंडल जैसा धर्मचक्र आगे चलाते हैं। २) चँवर-चामर :- समवसरण में बिराजमान प्रभुजी के दोनों ओर देवता चँवरचामर डुलाते हैं। चतुर्मुख-चारों दिशाओं में विराजमान प्रभु के दोनों ओर चार जोड़ी अर्थात् कुल आठ चँवर-चामर डुलाए जाते हैं। ३) मृगेन्द्रासन :- मृगेन्द्र अर्थात् सिंह। सिंहाकृति वाला सोने के उज्जवल आसन को सिंहासन कहते हैं। इसकी रचना देवतागण करते हैं। ४) छत्रत्रय :- समवसरण में देशना फरमाने हेतु बिराजमान प्रभु के शिरोपरि देवता तीन छत्र बनाते हैं। तीन लोक के नाथ-त्रिभुवनस्वामी यह सूचित करने हेतु तीन छत्रों की रचना करते हैं। ५) रत्नमय ध्वज :- प्रभु विहार करते हैं तब देवता एक ऊँचे रत्नमय ध्वज की रचना करते हैं, जो प्रभु के आगे आगे चलता है। ६) सुवर्ण कमल :- वीतराग परमात्मा विहार करते हैं तब देवतागण प्रभु की भक्ति करने के भाव से ९ सुवर्ण कमलों की रचना करते हैं। भगवान के चरणकमल इन सुवर्णकमलों के उपर ही पड़ते हैं, प्रभु के चरणकमल नीचे पृथ्वी पर पड़ते ही नहीं
७) समवसरण की रचना :- परमात्मा की देशना श्रवण करने हेतु देवतागण सोने चांदी और रत्नमय तीन गढ़ (प्राकार) युक्त समवसरण की सुंदर रचना करते हैं जिसमें बिराजकर प्रभु देशना फरमाते हैं। . ८) चतुर्मुखपना :- समवसरण में प्रभु देशना देने हेतु पूर्वदिशा के सन्मुख बिराजमान होते हैं, तब चारों दिशा में बैठे हुए सभी श्रोताजनों को ऐसा लगे कि प्रभु हमारे समक्ष ही बैठे हैं, इसलिए देवता अन्य तीन दिशाओं में प्रभु के प्रतिबिंब की रचना करते हैं। इस रचना से प्रभु चतुर्मुख से देशना फरमाते हो ऐसा ही लगता है। ९) अशोक वृक्ष :- समवसरण के मध्य में देवता चैत्य-अशोक वृक्ष की रचना करते हैं। सभी जीवों के शोक दूर करनेवाला, शीतल छायायुक्त घटादार वृक्ष होता है जो सम्पूर्ण समवसरण को आवृत्त कर लेता है। १०) कण्टक उल्टे होना :- प्रभु विहार करते हैं तब मार्ग में काँटे भी उल्टे हो जाते
११) द्रुमानति-वृक्ष का झुकना :- प्रभु के मार्ग में वृक्ष भी अवनत-नम्र हो जाते हैं,
429