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________________ वृक्षगीत गा रहा हो - ऐसा लगता है - ऐसा अशोक वृक्ष आपकी भक्ति में मानो निमग्न हो - ऐसा शोभायमान होता है । यह अशोक वृक्ष भगवान के देह - अवगाहना से बारह गुना उँचा होता है। संपूर्ण समवसरण को यह अपनी घनघटा से आच्छादित कर देता है। एक योजन की भूमी पर मानों चँदरवा बाँधा हो ऐसा लगता है। यह प्रथम प्रांतिहार्य है । २. सुरपुष्पवृष्टि :- प्रभु के पुण्य प्रभाव से देवतागण पुष्पवृष्टि करते हैं । समवसरण के आसपास १ योजन भूमि में चारों ओर सुरभित पुष्पों की वृष्टि करते हैं। चारों ओर का वातावरण सुगंधित बन जाता है । हेमचन्द्राचार्य महाराज फरमाते हैं कि आयोजनं सुमनसो ऽधस्तान्निक्षिप्तबंधनाः । जानुदघ्नीः सुमनसो देशनोर्व्यां किरन्ति ते ॥ जिनका डंठल नीचे की ओर है ऐसे पुष्पों को देवतागण घुटनों तक आपकी देशनाभूमि में चारों ओर एक योजन विस्तार में बरसाते हैं । इस प्रकार वीतराग स्तोत्र में वर्णन है । यह कार्य देवता करते हैं । 1 ३. दिव्य ध्वनि :- समवसरण में बिराजमान प्रभु जब देशना प्रदान करते हैं, तब प्रभु की ध्वनि में तो एक प्रकार की दिव्यता होती है, प्रभु मालकोश राग में देशना देते हैं । सर्वजन समुदाय को अमृत के स्वाद समान सुखानुभूति होती है । सभी जीव समान रुप से समझ पाते हैं । द्राक्ष अथवा मिश्री से भी हजारगुनी मधुर प्रभु की वाणी होती है । इसमें ओर अधिक मधुरता लाने के लिए देवता बाँसुरी से सुर मिलाते हैं । मनुष्य तो क्या बल्कि देवता भी श्रवण करते-करते निमग्न - तल्लीन हो जाते हैं । ४. चामरद्वय :- परमात्मा समवसरण में बिराजे हो अथवा विहार करते हो प्रत्येक समय देवता प्रभु के दोनों ओर चामर डुलाते हैं । भगवान को पसीना होता ही नहीं है । फिर भी भक्ति के भाव से प्रेरित होकर देवता दोनों ओर सतत चामर डुलाते हैं । ये चामर कंद जैसे श्वेत वर्ण वाले होते हैं ऐसा भक्तामर स्तोत्र के कुंदावदात-चल-चामर-चारु - शोभं इस श्लोक में वर्णन किया है । 1 - 423
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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