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आयुष्यकाल समाप्त हुआ है और अब स्वर्ग से मेरा च्यवन होने वाला है तथा माता की कुक्षि में - मैं गर्भरूप से उत्पन्न होने वाला हूँ । गर्भ में आने के पश्चात् प्रभु जानते हैं कि मेरा च्यवन हो चुका हैं, परन्तु वर्तमान काल में मेरा च्यवन हो रहा है इसका पता नहीं चलता क्यों कि वर्तमानकाल इतना सूक्ष्म है और इतने सूक्ष्म काल के २ या ३ समय में यह कार्य हो चुका होता है कि इस च्यवन का वर्तमान काल और वर्तमान कालिक क्रिया का स्पष्ट ख्याल नहीं आता । इस प्रकार श्री 'कल्पसूत्र में वर्णन है ।
जिस दिन परमात्मा माता के गर्भ में पधारते हैं, उस दिन को ही च्यवन कल्याणकके रुप में माना जाता है । कल्याणक अर्थात् कल्याण करने वाला । शास्त्रों में प्रभु के पाँच कल्याणक बताए हैं (१) च्यवन कल्याणक, (२) जन्म कल्याणक (३) दीक्षा कल्याणक (४) केवलज्ञान कल्याणक और (५) निर्वाण कल्याणक इन कल्याणक के दिनों में समस्त लोक में आनंद ही आनंद छाया रहता है । दुःखी आत्माएँ भी प्रसन्न हो जाती हैं । आनंदका अनुभव नरक आदि में भी हो जाता है ।
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माता के उदर में प्रभु का वास
स्वर्ग से च्यवन कर माता के उदर में पधारे हुए प्रभु के प्रभाव से उनकी मातुश्री चौदह स्वप्न देखती हैं । स्वप्नशास्त्र में वर्णित ७२ स्वप्नों में से ३० महा स्वप्नों में से विशिष्ट प्रकार के खास १४ महा स्वप्न देख कर मातुश्री प्रातः जागृत होती हैं और जाकर राजा को १४ स्वप्नो का निवेदन करती हैं । फिर राजा स्वप्न पाठकों को बुलाकर उन्हें स्वप्न फल संबंधी बातें पूछते हैं । स्वप्न शास्त्र विशेषज्ञ स्वप्नों का वर्णन करते हुए ३० स्वप्नों में से इन १४ स्वप्नों को सर्व श्रेष्ठ बताते हुए कहते हैं कि ये १४ स्वप्न तीर्थंकर की माता को अथवा चक्रवर्ती की माता को आते हैं। इनमें देव विमान आदि के निर्णय पर यह तीर्थंकर का जीव है - ऐसा जानकर मातुश्री सुखपूर्वक धर्म का पालन करती हैं ।
तीर्थंकर परमात्मा गर्भरूप में जब माता के उदर में रहे हुए होते हैं, तब माताजी को दोहद उत्पन्न होते हैं ये दोहद (भाव) भी विशिष्ट कक्षाके होते हैं, उन में भी दान देने, साधु साध्वीवृंद की भक्ति करने, तीर्थयात्रा करने, अमारि पडह बजवाने, स्वामि वात्सल्य करवाने, अभयदान देने, जिनमंदिर आदि के दर्शनार्थ जाने, गज अंबाडी पर बैठकर लोगों पर शासन करने आदि प्रकार के दोहद उत्पन्न
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