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________________ देव या नरक गति में ही जाता है वहाँ जन्म लेकर वह देवता या नारक बनता है, . फिर वह भवपूर्ण करके च्यवन करता है और चरम भव में प्रवेश करता है । च्यवन करके चरम भव में आना : ___ च्यवन करना अर्थात् एक जन्म में से मृत्यु प्राप्त कर दूसरे जन्म में आना। स्वर्ग - नरकादि का आयुष्यकाल समाप्त होने पर वहाँ से च्यवन कर के अर्थात् मृत्यु प्राप्त कर उतर कर जहाँ जन्म लेना हो उस उत्पत्ति स्थल में माता के गर्भ में आने का नाम च्यवन है तीर्थंकर परमात्मा पूर्वभव समाप्त करके चरम भव में आकर माता के गर्भ में प्रवेश करते हैं जिसें च्यवन कल्याणक कहते हैं । चौबीसों तीर्थंकर भगवंतो के च्यवन कल्याणक की तिथियाँ शास्त्रों में वर्णित हैं जैसे - (१) प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान का च्यवन कल्याणक ज्येष्ठ कृष्णा .... ४ है। (२) सोलहवे श्री शांतिनाथ भगवान का च्यवन कल्याणक श्रावण कृष्णा ७ है । (३) बाईसवे. श्री नेमिनाथ भगवान का कल्याणक आश्विन कृष्णा १२ है । (४) तेईसवे तीर्थाधिपति श्री पार्श्वनाथ भगवान का च्यवन कल्याणक फाल्गुण कृष्णा ४ है। (५) चौबीसवे चरमतीर्थपति श्री महावीर स्वामी भगवान का च्यवान कल्याणक आषाढ शुक्ला ६ है । इस प्रकार चौबीसों भगवानों के २४ च्यवन कल्याणकों की सभी तिथियाँ स्पष्ट रुप से दी हुई हैं । पंचाग आदि में प्रकाशित हैं । इन च्यवन कल्याणक आदि पाँचों ही कल्याणकों की आराधना - तपश्चर्या व्रतादि से होती है ये तिथियाँ अर्थात तीर्थंकर परमात्मा का जीव पूर्वभव में से च्यवन कर माता के गर्भ में जिस दिन आया और गर्भ के रुप में उत्पन्न हुआ उसी दिन की तिथियाँ हैं । सामान्यतः मनुष्यों में यह विचार आना लगभग असंभव सा ही होता है कि किस दिन गर्भ में जीव आता है । इसका पता ही नहीं लगता । स्त्री को भी गर्भ ठहरने के प्रथम दिन का तो ख्याल आता ही नहीं, जब कि तिर्थंकर भगवान किस दिन - किस तिथि को पूर्वभव समाप्त करके मृत्यु पाकर माता की कुक्षि में आकर गर्भरूप से उत्पन्न हुए उन तिथियों का निश्चित् उल्लेख प्राप्त होता है । यह ज्ञानी गीतार्थ भगवंतों की देन है । इस तिथि को ही च्यवन कल्याणककी तिथि कहते है। तीर्थंकर परमात्मा जन्म से ही तीन ज्ञान के स्वामी होते हैं । प्रभु जानते हैं कि मेरा 399
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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