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में गाढ अनादि मिथ्यात्व के अंधकार में जीव को वास्तविक सच्चा आनंद जो कभी भी नहीं हुआ था, वह आज प्रथमबार होता है । जन्म से अँधे व्यक्ति ने सो वर्ष तक प्रकाश, रुप, रंग कुछ भी देखा ही न हो, ऐसे की अचानक मृत्यु के समय आँखे खुल जाएँ और उसे सब कुछ दिखाई देने लगे और उसका उसे जो आनन्द होता है, उसकी अपेक्षा अनंत गुना आनंद जीव को सम्यक्त्व की प्राप्ति के समय होता है । क्यों कि सच्चा ज्ञान, सच्चा तत्त्व आज प्रथम बार ही समझ में आया
आनन्दो जायते अत्यन्त तात्त्विकोऽस्य महात्मनः ।
सदृष्याध्याभिभवे यद्वन व्याधिस्तस्य महौषधात ॥ उन सम्यक्त्व प्राप्त महात्माओं को अत्यन्त परमानंद होता है, तात्त्विक आनंद होता है, जिस प्रकार जीवनभर की खुजली आदि भयंकर व्याधि महौषधि से मिट जाने पर जो शांति प्राप्त होती है, वैसा ही आनंद जीवन में होता है । ये सभी स्थूल उपमा के द्दष्टान्त हैं । आत्मा के आनंद की अनुभूति करवाने जाएँ तो ये उपमाएँ - ये दृष्टान्त छोटे पड़ते हैं ।
सम्यक्त्व प्राप्ति पर मोक्ष निर्णय :
- अनादि अनंत काल में मिथ्यात्व के अंधकार में ८४ के चक्कर में परिभ्रमण करते हुए जीवात्मा ने कभी भी पूर्व में न प्राप्त किया न अनुभव किया ऐसा परमानंद, सम्यक्, सत्य तत्त्व की श्रद्धा और ज्ञानादि प्राप्त होने पर अब जीव का संसार परिभ्रमण अनंत के बजाय मर्यादित हो जाता हैं, अर्थात् अब इसके बाद उसे अनंत-काल तक भटकना नहीं पड़ेगा - अब तो निश्चित काल में वह मोक्ष में जाएगा ही । अब अनंत पुद्गल परावर्तकाल तक संसार चक्र में उसे भटकना नहीं पड़ेगा - ऐसा शास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख है ।
. . अन्तोमुहुत्तमित्तं पि फासियं हुज्ज जेहिं सम्मत्तं ।
तेसिं अवड्ढ पुग्गल परियट्टो चेव संसारो ॥ (नव तत्त्व ५३)
एक अन्तर्मुहूर्त, २ घटिका, ४८ मिनिट भी जिसे सच्ची श्रद्धा रुप सम्यक्त्व का स्पर्श हो चुका हो, प्राप्त हो चुका हो, उस सम्यक्वशील भव्यात्मा का अब मात्र अर्ध पुद्गल परावर्त काल ही संसार शेष रहता है । एक पूर्व वलय वर्तुलाकार आवर्त जिसे एक पुद्गल काल कहते थे और ऐसे जीव ने अनंत पुद्गल परावर्त काल परिभ्रमण पूर्ण किये हैं, अब सम्यक्त्व प्राप्त करने के पश्चात् जीव के लिये
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