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________________ है। एक-एक तीर्थंकर होते होते २४ तीर्थंकर होते हैं जिनका समूहात्मक नाम चौबीशी है। कालचक्र में (१) उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी इस प्रकार आरोह-अवरोह के क्रम से दो काल होते हैं। इन में से एक उत्सर्पिणी में २४ तीर्थंकरों की एक चौबीशी होती है और इसी प्रकार १ अवसर्पिणी काल में भी २४ तीर्थंकरों की एक चौबीशी होती है। यह नियम ढाई द्वीप के भरत तथा ऐरावत नामक दोनों ही क्षेत्रों में लागू होता है, जब कि महाविदेह क्षेत्र में बीस-बीस तीर्थंकरों की बीशी होती है। वहाँ सदाकाल तीर्थंकर होते हैं, जब कि भरत - ऐरावत क्षेत्र में एक दूसरे के समान सब चलता है। नीचे दिये गए चित्र को देखने से स्पष्ट रुप से समझ में आ जाएगा 7 कालचक्र ४को.को. सागरोपम. युगलिक जीवन पहला सुषम सुषमा आरा DOO दूसरा सुषम आरा ३को. को. सागरोपम. युगलिक जीवन A4... 0% का..--. तीसरा सुषमषमआरा, सरको.को. सागरोपमः र्पि युगलिकजीवन. पणी पहले तीर्थकरकाजन्म ल'चौथा दूषम सुषमआरा १को. को. सागरोपम... [४२००० वर्षकम] - २३ तीर्थकर का जन्म दूषमआरा.२१000 वर्ष दषम दषम आरा.२१००० बर्षे . (जैन धर्म का अंभाव] प कि उत्सर्पिणी काल में ६ आरे हैं और उसी प्रकार अवसर्पिणी काल में भी ६ आरे हैं। इन ६ आरों में मात्र तीसरे और चौथे आरे में ही तीर्थंकर भगवंत होते हैं । तीसरे आरे के अन्तिम भाग में एक तीर्थंकर भगवान होते हैं। अतः वर्तमान चौबीशी के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान तीसरे आरे के अन्तिम भाग में हुए थे। शेष तेइस तीर्थंकर भगवंत अर्थात् अजितनाथ से महावीर स्वामी तक सभी चौथे आरे में हुए थे। इस प्रकार २४ तीर्थंकर १ अवसर्पिणी के तीसरे और चौथे इस प्रकार दो, आरों में होते हैं। इसे एक चौबीशी कहते हैं । तत्पश्चात पाँचवा आरा प्रारम्भ होता है। आज पाँचवे आरे के भगवान महावीर के पश्चात ढाई हजार वर्ष बीत चुके हैं । पाँचवा आरा कुल २१ हजार वर्ष का होता है अर्थात् अभी तो साढे
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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