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________________ तीर्थंकरों का भी भूतकाल अनंत है ૨.મનુષ્યનું ચાટૅ ગતિમાં ૩. તિર્થન્ચને ચારે ગતિમાં ગમન ગમન 1.ચાર ગતિ મનુણ દેવ - તિર્થક્ય નરક ४. पर्नु जतिमा- . .५.नरम गतिमा ગમન समन. H तीर्थंकर बनने वाली आत्मा भी जब तक सम्यक्त्व प्राप्त नहीं करती, तब तक उसका भी भूतकाल अनन्त ही होता है । भूतकाल अर्थात् सम्यक्त्व प्राप्ति से पूर्व का काल । वह भी अनंत होता है । सम्यक्त्व की प्राप्ति के पूर्व तो तीर्थंकर भी मिथ्यात्वी - मिथ्यादृष्टि ही थे और मिथ्यात्व में सर्व विपरीतता होने के कारण किसी भी तत्त्व का सच्चा ज्ञान ही नहीं होता तब तक तो पता ही नहीं चलता कि यह पाप करने से ऐसा होगा या वैसा होगा | या इतने कर्म बढ़ेंगे आदि कर्म - धर्म - किसी का भी वास्तविक ज्ञान नहीं होता, न सच्ची श्रद्धा ही मिथ्यात्व के काल में होती है । अर्थात् पाप प्रवृत्ति, कर्मबंध - कर्म का उदय दुःख, वेदना, जन्म - जन्मांतर, गत्यन्तर भवान्तर आदि में अनंतकाल का निर्गमन हो जाता हैं । भावी में भगवान बनने वाला जीव भी इस स्थिति में आ जाता हैं । भविष्य में भगवान तो बनेंगे तब बनेंगे, परन्तु भावी में भगवान बनने वाले जीव भी भूतकाल में तो मिथ्यात्वी ही थे - अज्ञानी ही थे । तब तक उन्होंने भी अपना भूतकाल अनंत भव संख्या, अनंत अनंत भव करते करते बिताया, परन्तु जब वे सम्यग्ज्ञान प्राप्त करते हैं - सच्ची समझ के स्वामी बनते हैं और सम्यक्त्व प्राप्त करते हैं तत्पश्चात् ही मोक्ष में जाते हैं । उस अन्तराल की भव संख्या मर्यादित होती हैं । इस प्रकार वर्तमान चोबीसी के २४ तीर्थंकर भगवंतों की जो भव संख्या है, उसमें प्रत्येक की न्यूनाधिक संख्या कहलाती है । किसी की ३,६,१०,१२,१३ 371
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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