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कल्याण साध सकता हैं । इतिहास के पृष्ठों पर सैंकड़ो उदाहरणों का वर्णन हैं ।
(१) गजसुकुमाल के सिर पर खेर के अंगारे भरे गए थे । उनका श्वसुर ही उन्हें मारने आया था, पर भला किसका हुआ ? मरने वाला तिरा या मारने वाला ?
(२) मस्तक पर चमड़े की पट्टी कसकर बाँधने पर भी मेतारज मुनि पक्षियों का नाम नहीं बताते हैं । प्रचण्ड धूप में वे कायोत्सर्ग ध्यान में स्थिर ही रहते हैं । ध्यान की साधना शुरु हो गई । महान् कौन बना ? मारने वाला सोनी या मरने वाले मुनि ?
(३) पापी पालक एक के बाद एक इस प्रकार मुनियों को कोल्हू में डालकर पीसता ही जा रहा है । तिल में से जैसे तेल निकलता है, उसी प्रकार मुनिओं के शरीर में से खून धारा बहने लगी । एक - एक करके ४९९ मुनि कोल्हू में पिसे गए । गुरु महाराज स्कं लाचार्य सभी को उत्तम अध्यवसाय पर आगे बढाते गए, ४९९ को तो केवलज्ञान हो गया और सभी मोक्षमें सिधारे । महान् कौन बना ? मारने वाला पापी पालक या मरने वाले ? मारने वाले पापी पालक का क्या हुआ होगा ? मरने वाले मुनियों का जो हुआ वह तो स्पष्ट ही है ।
(४) ग्वाला महावीर को मारने आया, उसने महावीर के कानों में बड़ी कीले ठोकी, क्यों कि उसकी नियत ही बुरी थी । कीलें ठोककर वह भाग गया । महावीर तो अपनी ध्यान-साधना में दृढतापूर्वक स्थिर ही रहे । कौन तिरा ? ग्वाला या महावीर ? . (५) मैं भगवान हूँ - मैं जिन हूँ - इस प्रकार स्वंय को भगवान मानता हुआ गोशालक अभिमान में अक्कड़ बन कर घूमता था । अन्त में क्रुद्ध होकर उसने महावीर को मारने के लिये उन पर तेजोलेश्या छोड़ी । वह उन्हें जलाकर भस्मीभूत कर डालना चाहता था, परन्तु तेजोलेश्या महावीर को प्रदक्षिणा लगाकर तुरन्त ही जहाँ से आई थी वही सी गोशालक के शरीर में प्रविष्ट हो गई और वह झुलसने लगा, आलोटने लगा... इस स्पष्ट चित्र में क्या लगता है ? किसका उद्धार हुआ ? कौन तिरा ? मारने वाला महान् बना या मरने वाला ?
इस सिद्धान्त पर चलने वाले तीर्थंकर भगवंत कभी भी किसी को भी मारने नहीं जाते । न वे शस्त्रादि ही रखते हैं । अतः शस्त्रादि का उपयोग करने का तो उनके लिये प्रश्न ही नहीं उठता । इसलिये आदिनाथ से लगाकर महावीर स्वामी
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