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________________ अतः आत्मा कैसी है ? इसका उत्तर यही है कि आत्मा स्वगुणों से परिपूर्ण है, स्वगुण सम्पन्न है अपने ही गुणों से युक्त है । कर्मो का स्वरूप : . __राग द्वेष-क्लेश-कषाय विषय-आदि सैंकड़ो प्रकार की विपरीत प्रवृतियाँ करने से जीव कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणुओं को चुम्बक की तरह अपनी और आकर्षित करते हैं । जैसे एक लोह-चुंबक में चुंबकीय शक्ति होने से वह बाह्य लाह-कणों (iron - particles) को अपनी और खींचता है, आकर्षित करता है और वे आकृष्ट लोहकण जिस प्रकार लोहचुंक्क के साथ चिपक जाते हैं, उसी प्रकार मुख्य रूप से रागद्वेषादि की पापाचरण की प्रवृत्ति से पुद्गल-प्रदेश में रही हुई कार्मण वर्णणा जीव के द्वारा आकर्षित होती है । जीवात्मा में राग-द्वेषादि की प्रवृत्ति के कारण एक प्रकार का स्पंदन होता है । उस स्पंदन से आत्मा के बाहर चारों और प्रसरित कार्मण वर्गणाएं आकृष्ट होकर आत्मा में आती है और आत्मा - द्वव्य में प्रविष्ट होकर आत्मा के साथ घुलमिल जाती है आत्मा के साथ चिपक जाती हैं | आत्मा के एक एक प्रदेश में अनंत कार्मण वर्गणाये चिपककर एकरस एक पिंड बन जाती है । स्वजातीय आत्मा में विजातीय तत्त्व विपरीत स्वभावी तत्त्व आत्मा के घर में चोर की भाँति घुस जाता है । जड-पुद्गल पदार्थ वर्ण-गंध-रस-स्पर्शादि गुणयुक्त होते हैं । ये सभी गुण आत्म गुणों से सर्वथा विपरीत प्रकार के ही गुण हैं, क्योंकि आत्मा अनामी - अरूपी - अवर्णी - अगंधी है, जबकि पुद्गल तो वर्ण-गंध-रूपरसादियुक्त होते हैं । ऐसे कार्मण वर्गणा के सभी पुद्गल परमाणु आत्मा पर आकर छा जाते हैं, जिसके कारण आत्मा के गुण उसी प्रकार ढक जाते है - दब जाते है, जिस प्रकार सूर्य पर बादल आ जाने से सूर्य की किरणों का प्रकाश आने से रुक जाता है । बादलं आवरण हैं, वे आवृत्त करने रोकने का कार्य करते हैं । घर की फर्श अति सुंदर हो, परन्तु रंजकण महिनों तक छाए रहे तो सुंदर स्वच्छ मार्बल की फर्श होने परभी ढक जाती है । घरमें प्रकासमान लाईट के बल्ब पर वस्त्र डालने से जैसे बल्ब ढक जाता है और प्रकाश भी आगे आने से रूक जाता है उसी प्रकार आत्मा पर आने वाले इस आवरण - पिंड को कर्म कहते हैं । आत्मा के 345
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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