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________________ यद्यपि आत्मा रूप से साकार नहीं, फिर भी आत्मा का एक काल्पनिक चित्र यहाँ प्रस्तुत किया गया है । यह एक आकृति है । बुने हुए वस्त्र में जैसे खड़े और आड़े तार होते हैं उसी प्रकार आत्मा के असंख्य प्रदेश हैं । वे इसी प्रकार गूंथे हुए होते हैं कि एक दूसरे के साथ खड़े और आडे क्रोस बनते जाते हैं । उन Cross points को प्रदेश कहते हैं । आत्मा से चेतन है । चेतना शक्ति सम्पन्न है । चेतनाशक्ति दर्शनात्मक ज्ञानात्मक दर्शनात्मक जानने और देखने की शक्ति को चेतना शक्ति कहते हैं। यह चेतना शक्ति आत्मा के सिवाय जगत के अन्य किसी भी द्रव्य मे नहीं हैं । अखिल ब्रह्मांड मे मूलभूत मात्र दो ही द्रव्य है- एक चेतन और दूसरा जड़ । जड - अजीव होता है । जीवरहित को अजीव या निर्जीव कहते हैं । जड़ चेतन से सर्वथा विपरीत स्वभाव मे होता है । जड़ में जानने-देखने अर्थात् ज्ञानदर्शानात्मक शक्ति का सर्वथा अभाव होता है । आत्मा स्व स्वरूप वाली स्वगुण सम्पन्न होती है । आत्मा के गुण तो अनंत है, परन्तु मुख्य गुणों को दो विभागो में विभक्त कर दर्शाए गए हैं । ज्ञानात्मक इस चित्र में उनके नाम भी प्रदर्शित किये गये हैं । (१) अनंत ज्ञान (२) अनंत दर्शन (३) अनंत चारित्र ( यथाख्यात स्वरूप) (४) अनंत वीर्य (५) अनामी - अरूपीपन (६) अगुरू • लघु (७) अनंत ( आव्याबाध) सुख ( ८ ) अक्षय स्थिति । आत्मा के ये आठ प्रमुख गुण 'ही के उपभेद देखें तो अनेक हैं। इन हो जाते हैं। ये गुण जड़ - अजीव में नही होते, अतः आत्मा के ही गुणों के रूप में जाने जाते हैं । गुण-गुणी का अभेद संबंध होता है । दोनों ही अभिन्न रूप से रहते हैं । गुण के बिना गुणी नहीं रहता और गुण के बिना गुण नहीं रहते । आत्मा के गुण कभी भी नष्ट नहीं होते हैं, 344 ज्ञान Efcirc અનંત દર્શન EHC IPH यानंतयारित्र. અનંત ાય:
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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