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________________ शास्त्रों मे - आगमों में स्पष्ट वर्णन है कि ज्ञान और क्रिया दोनों की संयुक्त साधना से ही मोक्ष प्राप्त होता है । यह सिद्धान्त अरिहंत पद में चरितार्थ होता है । अरिओ 1 का ज्ञान और उनके हनन की क्रिया- ये दोनों ही मिलकर मोक्ष दिलवाते हैं । इन दोनों के संयुक्त स्वरूप में अरिहंत बनना शक्य है - इसके बिना कदापि नहीं । किस पर विजय पाने की आवश्यकता है ? सिकंदर महान् सम्राट - संपूर्ण धरती का स्वामी बनने का इच्छुक था । उसने भारत पर भी आक्रमण किया और उसके सौभाग्य से वह एक के बाद एक विजय प्राप्त करता हुआ आगे बढ़ रहा था । विजय का भी एक प्रकार का नशा होता है । अपनी विजय का डंका बजाता हुआ अपनी सेना के साथ वह आगे कूच कर रहा था । मार्ग में एक ओर एक वृक्ष के नीचे कोई मुनि महात्मा कायोत्सर्ग मुद्रा में ध्यान-साधना कर रहे थे । सैन्य के आगे आगे चलते हुए अंग रक्षक दूतों में मुनि महात्मा के पास आकर तीव्र ध्वनि करते हुए कहा - ओ महात्मा ! छोड़ो तुम्हारा ध्यान ! इस पृथ्वी के स्वामी और महान सम्राट सिकंदर पधार रहे हैं । उनके चरणों में गिरकर नमस्कार करो । महान् सम्राट को सभी नमन करते हैं सभी उनके चरणों में झुकते है उन्हें नमस्कार करते हैं अतः तुम भी उनके चरणों झुककर उन्हें नमस्कार करो। ध्यानस्त महात्मा ने इस बात पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया, उन्होंने अपनी स्थिरता नहीं छोड़ी, इतने में विजययात्रा आगे बढ़ी और हाथी की अंबाडी पर आसीन सिकंदर महात्मा के पास आ पहुँचा, हाथी को खड़ा रखा गया । साधु महात्मा पर सभीने बार बार सिकंदर को नमस्कार करने के लिये आग्रहपूर्वक दबाव डाला गया, ध्यानभंग होने से महात्मा ने अपनी आंखें खोली और सामने देखकर पूछा किसे नमस्कार करूं ? विशाल जन समुदाय ने उत्तर दिया - विश्व विजेता महान् सम्राट सिकंदर को नमस्कार करो, इनके चरणों में झुककर नमन करो । महात्मा ने दूसरा प्रश्न किया- क्यों ? अरे ! क्यों का क्या मतलब ? इन्होने सर्वत्र विजय प्राप्त की है और ये विश्व विजेता तथा समस्त पृथ्वी के स्वामी महान् सम्राट बने हैं इसलिये ! यह उत्तर सुनकर महात्मा कुछ स्मित के साथ विनोद करते हुए बोले- अरे भाइ सिकंदर ! क्या इस जमीन के टुकडे को जीतने वाला महान् कहलाता है । हजारों लाखों को मारकर उनका रक्त बहाने वाला क्या बड़ा मालिक विजेता कहलाता है ? क्या यह पृथ्वी तुम्हारे साथ आएगी ? क्या यह राज्य तुम्हारे साथ आएगा ? इन क्षणिक नाशवंत वस्तुओं पर 339 = -
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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