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________________ नवकार महामंत्र के रचयिता कौन ? जगत में नियम है कि किसी भी रचना के रचयिता अवश्य होते हैं । कृति हो तो कर्ता का होना आवश्यक है । इस संसार में ऐसी सैंकडों रचनाएँ जगत्-विख्यात हैं तो उनके रचयिता-कर्ता भी जगविख्यात हैं । क्या नवकार को भी हम कोई रचना या कृति मानें या नहीं ? यदि इसे रचना या कृति मानते हैं तो इसके रचयिता या कर्ता भी तो मानने चाहियें न ? यह विचार करते हैं तो इतना अवश्य ही स्पष्ट हो जाता है कि नवकार महामंत्र एक सुंदर स्तोत्र, स्मरण अथवा मंत्र स्वरुप रचना है- इसमें तनिक भी शंका नहीं है, क्यों कि नवकार महामंत्र में पद, गाथा, लोक की सुव्यवस्थित रचना है, तो क्या इसके कर्ता अथवा रचयिता है ही नहीं अथवा उनकी किसी को जानकारी नहीं है ? क्या हमारा जैन धर्म भी वैदिक धर्म की भाँति मानता है कि 'वेद तो हैं परन्तु वेदों का कर्ता - रचयिता कोई भी नहीं है, अतः वेद अपौरुषेय है'- इसी प्रकार नवकार मंत्र तो है, परन्तु इसका रचयिता - कर्ता कोई नहीं । ‘वेदोऽपौरुषेय अकर्तृत्वात् '- अकर्तृत्व के कारण वेद अपौरुषेय हैं । हिन्दू धर्म में वैदिक मत अलग मत है - अनेक मतों में से यह एक मत है । उनके अनुसार वेद ४ हैं - १ ऋग्वेद, २ यजुर्वेद, ३ अथर्ववेद, ४ सामवेद । ये चारों ही वेद ग्रंथाकार हैं । इन में लिपि से सब कुछ लीखा गया है । इनमें सैंकडो विषयो पर सेंकड़ो बाते लिखी गई है ये अतिप्राचीन और हजारो वर्षों से हैं । इतना सब कुछ होते हुए भी वेद किसी बुद्धिमान् पुरुष की रचित रचना अथवा कृति नहीं है । इसीलिये वेद अनादि - अपौरुषेय के रुप में विख्यात हैं । अनादि अर्थात् काल की दृष्टि से जिसकी आदि नहीं है वह अनादि है । पौरुषेय अर्थात् पुरुष द्वारा रचित । पुरुष कृतिमत्व और इसका विलोम शब्द है अपौरुषेय । अर्थात् पुरुष कृतिमत्व मात्र वेद में ही सिद्ध नहीं होता हैं, परन्तु सृष्टि आदि में भी सिद्ध होता है । अर्थात् बनाने वाले जगतकर्ता ईश्वर ने सृष्टि बनाई है ऐसा कहा जाता है परन्तु वेद बनाए हैं- ऐसा नहीं कहा जाता हैं । वेद की रचना ईश्वर नहीं करते हैं परन्तु वेदों में लिखा हुआ देख देखकर तदनुसार ईश्वर सृष्टि की रचना करते हैं - ऐसा वैदिक मत का कथन है । . तर्क-युक्ति और बुद्धिपूर्वक विचार करने पर एक बात स्पष्ट ज्ञात होती है कि जो वेदादि वर्णमाला प्रधान हैं, जिनमें अ-ब-क-उ-आदि अक्षरों की रचना है, अक्षरों का समूह शब्द है और शब्द समूह वाक्यात्मक कहलाता है । वाक्य समूह अनुच्छेद स्वरुप हैं, अनुच्छेद समूह अध्याय स्वरुप में हैं और अध्याय स्वरुप ग्रंथ 14
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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