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क्रुद्ध हुआ और बोला - क्या तू मुझे भिखारी समझता है ? भिखारी बोला हाँ - राजन् ! उसका निडर उत्तर था । राजा :सैनिको ! इसे फाँसी दे दो । सैनिक तो उसे पकड़कर ले जाते हैं और राज दरबारकें खचाखच भरे हुए चौक में सबके बीच भिखारी का अपराध घोषित कर उसे फाँसी पर चढ़ाने की तैयारी करते हैं । भिखारी को उसकी अन्तिम इच्छा पूछने पर भिखारी ने कहा - मैं इतना ही जानना चाहता हूँ कि भिखारी की व्याख्या क्या है ? राजा ने उत्तर दिया - जो दूसरे के पास माँगता है वह भिखारी कहलाता है । यह सुनकर भिखारी ने निडरता से पूछा - राजन ! तो फिर मंदिर में जाकर आपने गणेशजी के पास क्या किया। क्या कहा था । कितना माँगा था ? राजा बोला - भगवान के पास तो माँगा जाता है । वह तो सबका पिता है, उसके पास माँगने में शर्म कैसी ? भिखारी : राजन ! भले ही माँगा जाता होगा । मुझे पता नहीं कि भगवान के पास माँगा जाता है या नहिं. परन्तु आपकी ही व्याख्यानुसार आप भिखारी सिद्ध हुए या नहीं ? राजा : भाई ! बात तो तेरी सच्ची हैं । भिखारी : बस ! यदि मेरी बात सच्ची ही हो तब तो मुझे फाँसी पर चढ़ाने का कारण क्या है ? हम तो छोटे भिखारी हैं । हम तो १०-२० पैसे अथवा एकाद रूपया माँगते हैं, पर आप तो हमारी जाति के ही कितने बड़े भिखारी हो ? आप ने तो माँगें हैं अरबों ! हम तो retail में माँगते हैं, परन्तु आप तो Wholesale में धंधा करते हो, सब कुछ एक साथ ही माँग लेते हो । हमारी अपेक्षा आप तो हजार गुने बड़े भिखारी कहलाओ तो मुझ से पूर्व आपको फाँसी लगनी चाहिये ।
__राजा रहस्य को समझ गया ! उसकी समझ स्पष्ट होने लगी कि मैंने वास्तव में प्रभु की स्तुती की है - प्रभु के दर्शन किये हैं या भगवान के पास मांग मांग ही करता रहा हूं । इस प्रकार तो गत ६०-७० वर्षों से मैं माँगता ही रहा हूँ
और मुझे क्या मिला? भगवान ने कितना दिया ? इस भिखारी के कथनानुसार तो मैं भी भिखारी ही सिद्ध होता हूँ और वह भी छोटा-नगण्य नहीं, परन्तु बड़ा भिखारी । हाँ, इसकी बात में तो पूर्ण सत्यता है । ____ इस प्रकार मनोमंथन शुरू हुआ | क्या भगवान के पास माँगना होता है ? क्या माँगना उचिंत है ? यदि ऊपरवाला दयालु ही हो तो फिर हमारे माँगने की आवश्यकता ही क्या है ? परन्तु सारी दुनिया माँगती ही है । वर्षों से माँगती ही
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