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कहता । अतः ईश्वर उपास्य तत्त्व हैं, उपासना का माध्यम तत्त्व है । यह पद प्राप्त करने के लिये १४ गुणस्थान की क्षेणी पर प्रगति करते हुए कर्मक्षय करके तीर्थंकर नाम कर्म का विशिष्ट कोटि का पुण्योपार्जन करना पड़ता है, तब कहीं कालांतर में तीर्थंकर अरिहंत बनना शक्य हैं । इसी परमात्मा को जैन दर्शन ईश्वर - परमेश्वर के स्वरूप में स्वीकार करता हैं । यह एक महान् पद है - आत्मा की महान् व्यवस्था है । इसे प्राप्त करने के लिये जो कुछ भी करना पडता है वही उसकी उपासना - साधना है । जैन दर्शन मानता है कि आत्मा ही परमात्म स्वरूप प्राप्त करती हैं और जैन दर्शन की मान्यतानुसार आत्माएँ अनंत हैं, अतः अनंत परमात्मा भी जैन दर्शन स्वीकार करता है । जैन दर्शन ने मात्र किसी एक को ही ईश्वर का अधिकार नही सौंप रखा है । यह मात्र एक की ही सत्ता को स्वीकार नहीं करता । ईश्वरत्व साधना का साध्य है, प्रक्रिया अथवा प्रवृत्ति का परिणाम स्वरूप पद हैं, अतः जैन दर्शन कभी भी ईश्वर का साक्षात्कार करने की बात नहीं करता है । मात्र ईश्वर का साक्षात्कार करके अथवा प्रत्यक्ष दर्शन करके संतोष मानने की बात जैन दर्शन नहीं करता है । यह तो साधना के क्षेत्र में प्रथम सोपान की बात है, जब कि स्वयं ईश्वर बनकर संतोष मानने पर बल देता है अर्थात् ईश्वर बनकर ही रहो । इस लक्ष्य से ही साधना करो । इसी के लिये ईश्वर का भजन, पूजनउपासना करो - यही प्रथम महान् लक्ष्य है ।
ईश्वर देता है अथवा, आत्मा स्वयं प्राप्त करती है ?
कर्म-धर्म की पद्धति में आस्था रखने वाला जैन दर्शन ऐसा कभी भी नहीं कहता है कि ईश्वर देता हैं । ईश्वर यदि देता है तो वह स्वंय की इच्छानुसार देता है अथवा याचक की याचना के अनुसार देता है । याचक जितना मांगता है उतना ईश्वर देही देता है अथवा ईश्वर अपनी इच्छा से जितना देना हो उतना मुक्त हस्त से देता है ? दोनों में से किस बात का उत्तर ईश्वरवादी देंगे ? यदि वे कहते हैं कि ईश्वर स्वेच्छानुसार देता है तब तो फिर माँगनेवाले के लिये मांगने जैसा कुछ भी नहीं रहता । देने वाला ईश्वर बिना माँगे ही स्वेच्छानुसार देता ही रहेगा और दाता ईश्वर तो परम् दयालु भी तो है, करुणानिधान है, दया का सागर है, वह यदि देने लगे तो कितना दे ? देते देते दोनों ही पक्षों को संतोष न हो उतना अतुल परिमाण में दे दे, परन्तु ९९ प्रतिशत लोगों की शिकायत है कि उपर वाला सुनता ही नहीं। मांग मांग कर हम थक गए परन्तु ईश्वर तो अभी तक कुछ भी देता ही नहीं है।
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