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प्रयुक्त नहीं हुआ हैं परन्तु नास्तिक शब्द व्युत्पत्ति के अर्थ में प्रयुक्त नहीं हुआ है अथवा दूसरी रीति यह है कि हम जिस प्रकार ईश्वर को जिस अर्थ में जगत् का कर्ता-हर्ता मानते हैं, उसी प्रकार से जैन ईश्वर को जगत् का कर्ता-हर्ता जैन नहीं मानते हैं अतः जैन नास्तिक हैं । बस, इसके सिवाय उनके पास अन्य कोई कारण नहीं हैं।
बुद्धिमान् सज्जनो ! थोड़ी सी बुद्धि का उपयोग करके आप भी इसका विचार करों चार वेद वैदिकों के प्राचीनतम ग्रंथ है । इस में कहीं भी दोमत नहीं हैं परन्तु वेदों को जिस अर्थ में वैदिक मानते हैं, और इनका जितना महत्त्व बढ़ा दिया है, वास्तव में इतना नहीं है । इसकी अपेक्षा हजार गुना महत्व बढ़ाने के लिये अतिशयोक्तियाँ भर दी हैं कि हमारे वेद अपौरुषेय हैं । ये किसी पुरूष विशेष की रचना नहीं हैं । वेदों का कर्ता रचयिता कोई भी नही है, यहाँ तक कि ईश्वर भी वेदों का रचयिता या कर्ता नहीं है । वेद ईश्वर से बड़े महान् हैं । ईश्वर तो वेदों के आधीन हैं । वेदों में प्राप्त वर्णानानुसार ईश्वर सृष्टि की रचना करता हैं । एक और तो इनकी यह मान्यता है, दूसरी और वेदों में परस्पर विरोधी सैंकड़ों बातें आती हैं । एक ओर कहते है कि ‘मा हिंस्यात् सर्व भूतानि' - किसी भी प्राणी को न मारो और दूसरी ओर कहते हैं कि 'अश्वमेधयज्ञ कुर्यात्' - घोडे का अश्वमेध यज्ञ किया जाए । विजय-स्वर्ग आदि की प्राप्ति हो इसके लिये अश्वमेध यज्ञ बताया गया है। एक. ओर गाय को पवित्र मानकर उसमे ३३ करोड देवताओ का निवास मानते हैं। गौमाता कहकर गाय को माता मानते हैं और दूसरी और गाय को मारने की और पुरोडाश करने की आज्ञा भी ये ही बेद देते हैं । एक और हिंसाका निषेध करते हुए कहते हैं कि हिंसक नरक गामी होगा और दूसरी और यज्ञ - याग में होती वेदविहित हिंसा को हिंसा मानने के लिये तैयार नहीं है । “स्वर्गकामो अग्नि होत्रं जुहुयात्” अर्थात् स्वर्ग की प्राप्ति करने हेतु अग्नि होत्र यज्ञ करो - ऐसी आज्ञा देते हैं। .
इस प्रकार वेदों में परस्पर विरोधी और विरोधाभासी सैंकडो बाते हैं । फिर ये वेदों को सर्वज्ञरचित भी स्वीकार नहीं करते । ऊपर से सर्वज्ञ को वेदाधिन मानते हैं । ऐसी सभी मान्यताए सर्वज्ञ को स्वीकार करने वाले जैन कैसे माने ? प्रश्न ही ख़डा नही होता है । जैन दर्शन - धर्म हिन्दु धर्म के अन्तर्गत नहीं गिना जाता और न यह वैदिक धर्म या दर्शन ही कहा जाता है, परन्तु यह एक स्वंतत्र विचारधारा वाला जगत का अनादिकालीन स्वतंत्र धर्म है । जैन धर्म की सिद्धान्त
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