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________________ नास्तिक हैं । भगवान को ही न माने वह नास्तिक कहलाता है - ऐसी लोक परम्परा सामान्यरूप से हैं, परन्तु इस दृष्टिकोण से भी विचार करें तो पता चलेगा कि - जैनों के तीर्थों-मंदिरो से यह समग्र पृथ्वी पावन हुई है । जैनों के भव्यातिभव्य - एक से एक बढ़कर तीर्थो - मंदिरों से गौरवान्वित होती हुई यह धरा सदियों से आज तक अपना मस्तक उन्नत किये हुए हैं । प्राचीन ऐतिहासिक जैन तीर्थ सदिओं और शताब्दिओं पुरानी मूर्तीयाँ आज तक जैन सिद्धांत के प्रमाण को प्रकट करती हुई जगत को संबोधितकर रही हैं । जैन धर्म के पूजा-पाठ-भक्तियोगप्रभुभक्ति पूजा-पूजनों के महान अनुष्ठान - आराधना के प्रकार - ये ही जैन दर्शन की ईश्वरोपासना के प्रबलतम प्रमाण है । इतिहास में आदिकाल से चली आ रही जैन मंदिरों की पूजा-पद्धतियाँ आदि वर्षों से अविरत अखंडरूप से चली आ रही है । अरिहंत परमात्मा पर ही जैन धर्म का सम्पूर्ण आधार है । उन्हें ही केन्द्र में रखकर सभी अनुष्ठान किये जाते हैं । क्या यह सब निरीश्वरभाव से करते हैं यदि जैन ईश्वर को नहीं मानते होते; तो क्या यह सब इस प्रकार करते ? संभव ही नहीं 1 इसके बजाय ऐसा कहो कि मान्यता की दृष्टि से - श्रद्धा की दृष्टि से अरिंहतादि परमेश्वर में जितनी श्रद्धा है, उतनी श्रद्धा इस जगत में अन्य किसी में मिलना कठिन है । जैनों की जिस प्रकार की प्रभु भक्ति है वैसी अदभुत भक्ति देखकर अच्छे-अच्छे नतमस्तक हो जाते हैं । यह सब देखते हुए जैनों को निरीश्वरवादी या ईश्वर को न मानने वाले या नास्तिक कैसे कहा जा सकता है ? इस संबंध में बुद्धि काम नहीं करती, और इतना सब कुछ मानने पर भी यदि किसी भी व्याख्या से जैनों को नास्तिक सिद्ध किया जा सकता है, तो जैन बाह्य अर्थात् जैनेतर दर्शन किसी भी प्रकार से, किसी भी व्याख्या से आस्तिक तो सिद्ध हो ही नहीं सकेंगे - बल्कि महा नास्तिक ही सिद्ध होंगे। जैनों को या जैन दर्शन को नास्तिक कहने का दुःसाहस करनेवाले एक मात्र न्याय - वैशेषिक और वेदान्तवादि ही हैं । बस, इनके सिवाय अन्य कोई नहीं। चार्वाकों ने जैनों को कभी भी नास्तिक कहा ही नही । बौद्धों ने भी जैनों को नास्तिक नहीं कहा है, तब न्याय वैशेषिकों अथवा वेदान्तवादि ने जैनों को नास्तिक क्यों कहा ? इसके उत्तरमें उन्होने स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि - 'नास्तिको वेदनिन्दकः' हमारे पवित्रतम ग्रंथ वेदों की निंदा जैन करते हैं अतः जैन नास्तिक हैं । यह तो एक प्रकार की गाली है । गाली के अर्थ में नास्तिक शब्द 324
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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