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उल्लेख है । अनेक ग्रंथो में चौबीसों ही चौबीस तीर्थंकर भगवंतो के उल्लेखचरित्रादि उपलब्ध होते हैं । दीपक जैसी स्पष्ट बात है । ४५ आगम तो आज स्थान - स्थान पर ज्ञान भंडारो में मुद्रित उपलब्ध हैं । ये ही ४५ आगम ताम्र पत्रों पर, भोज पत्रों पर संगमरमर की दीवारों पर और ग्रंथ स्वरूप विद्यमान हैं सूत्र टीका चूर्णी वृत्ति भाष्य स्वरूप में आज भी वे सर्वत्र उपलब्ध हैं । उनके नामों की सूची छपी हैं । आगम पुरूष के चित्र के साथ ४५ आगमों के नाम लिखे हुए तैयार मिलते हैं । प्रत्येक तीर्थंकर निश्चित रूप से सर्वज्ञ ही होते हैं । कोई भी जीव जब ४ घाति कर्मों का क्षय करता है, तब उसे केवलज्ञान अवश्य प्राप्त होता है । तत्त्वार्थाधिगम सूत्रादि ग्रंथ उसकी प्राप्ति की प्रक्रिया बताते हैं । कर्म ग्रंथादि में भी इस प्रक्रिया का वर्णन मिलता है । गुणस्थान क्रमारोह में १३वें गुण स्थान में प्रवेश करने पर केवलज्ञान प्राप्त होता है ऐसा स्पष्ट वर्णन हैं । केवलज्ञान - सर्वज्ञता
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जैसी वस्तु जैन शासन में से निकल जाए तब तो देह में से प्राण निकल जाने पर शव जैसी स्थिति हो जाती है । जैन दर्शनिको ने तार्किक युक्तियों के साथ सर्वज्ञता की सिद्धि कितने ही प्रमाणों के साथ की है । क्या यह सब वैद्य महाशय की दृष्टि में नही आया होगा ? क्या वे स्वंय दीपक जैसी स्थूल बातों से अनभिज्ञ थे ? और मान ले कि वे अज्ञान - अनभिज्ञ भी रहे होंगे, फिर तो ऐसे अज्ञात व्यक्ति के द्वारा ऐसा लिख मारने की धृष्टता न होनी चाहिये और लिखना ही था तो अध्ययन करके सोच - समजपूर्वक लिखना चाहिये था ।
जैन समाज ऐसे को पंच नियुक्त करके तिथि चर्चा का सुखद समाधान करने की प्रतीक्षा में था, परन्तु जो भी हुआ वह अच्छा ही हुआ । शासन का पुण्यं प्रबल रहा होगा और ऐसे व्यक्ति के द्वारा तिथि चर्चा का हल न हुआ । निर्णायक निर्णय नहीं हुआ और अनेक गतिमान चक्र स्वतः ही जन साधारण के सामने आ गए शासन - देवताओं ने भी अदृश्य रूप से शासन की महान सेवा - रक्षा की ।
ईश्वर विषयक जैन सिद्धान्त :
'श्री नमस्कार महामंत्र का अनुप्रेक्षात्मक विज्ञान' के चतुर्थ प्रवचन को पढ़ने से ईश्वर विषयक ख्याल तो आ ही चुका होगा ? जैन दर्शन ईश्वर को नहीं मानता - ऐसी बात नहीं है, मात्र अपने सिद्धांत के अनुसार ही मानता है अपने अर्थ में . ही मानता है, दूसरे की भाँति उसे कर्ता-हर्ता नहीं मानता है । अतः जैन दर्शन को निरीश्वरवादी कहना बहुत बड़ी भूल है । जैन ईश्वर को ही नहीं मानते हैं अतः
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