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________________ अथवा दार्शनिक ग्रंथो का अध्ययन किया होता तो निश्चित रूप से ऐसा नहीं लिख सकते थे, क्यों कि दार्शनिक तार्किक शिरोमणि सिद्धसेन दिवाकर सूरी, हरीभद्रसूरी, वादीदेव सूरी आदि तर्कवागीश धुरंधरो ने जिस प्रकार सर्वज्ञता को सिद्ध किया हैं - इसके लिये जो तर्क प्रस्तुत किए हैं उन्हें पढ़ेने के पश्चात् अच्छे से अच्छों को कान पकडने पडते हैं - तो इन वैद्य महाशय ने ऐसी वात कैसे लिख दी - यह बात समज में नहीं आती ।। इतना ही नहीं बल्कि हमारे दुर्भाग्य से जैन समाज तिथिचर्चा के निर्णायक के रूप में पी. एल. वैद्य को नियुक्त कर उन्हें महत्व देता है - पर यह भी क्यों ? क्या ऐसा लेख लिखने वाले कथित विद्वान की किसी ने भी भली प्रकार पहचान न की होगी ? क्या किसीने भी इनके क्रिया कलापों पर ध्यान नही दिया होगा ? या इनके लेख को पढ़ा या देखा न होगा ? बहुत वर्षों पूर्व लिखित यह लेख है । तिथि चर्चा का जैन समाज का ज्वलन्त प्रश्न और उसका सर्व मान्य निर्णय ऐसी विचारधारा रखने वाले घोर नास्तिक और महा मिथ्यात्वी के पास कैसे करवाया जा सकता है ? क्या ऐसे व्यक्ति को निर्णायक का भार सुपुर्द किया जा सकता है? खेद है ! जैन समाज का कितना दुर्भाग्य रहा होगा कि किसी अन्य को नहीं बल्कि इन्ही को निर्णायक पद पर बिठाने का मन हुआ । मैं जब पूना में था तब भांडारकर ओरियन्टल रिसर्च इन्स्टीटयूट में गया था। उस समय वैद्य महोदय लगभग ९० वर्ष की आयु में तीव्र ज्वर से पीड़ित थे। उसी अवधि में वेदशास्त्रोत्तेजक सभा का हीरक महोत्सव के विशेषांक की पुस्तक मेरे हाथ लगी थी । लेख पर दृष्टिपात हुआ, पढ़ते ही रोंगटे खड़े हो गए | चर्चा हेतु उनके पास गया था परन्तु वे व्याधिग्रस्त थे और फिर तो कुछ ही समय मे यमलोक सिधार गए, अतः प्रत्यक्ष चर्चा संभव न हो सकी, परन्तु लेख के प्रत्युत्तर में लेख लिखकर दो-तीन बार विद्वानों के समक्ष रखने का प्रयत्न अवश्य किया है, उनके विचारों से अवगत करवाया है । ऐसे तथाकथित विद्वान भी कभी कभी केसी घोर अज्ञानता के शिकार होते हैं - इसका यह प्रत्यक्ष उदाहरण हैं । दूसरी ओर बाल-युवा-वृद्ध सभी को पता है कि जैन-धर्म के २४ तीर्थंकर भगवंतो में प्रथम भगवान ऋषमदेव आदिनाथ हुए है और उन आदिनाथ से लगाकर अन्तिम २४ वे भगवान महावीर स्वामी तक कुल २४ तीर्थंकर भगवंत हुए हैं । त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र, महाकाव्य ग्रन्थ में श्री हेमचन्द्राचार्य महाराजने २४ तीर्थंकरो के चरित्रों का वर्णन किया है । आगमों में भी इनका 322
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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