SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 335
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'जर थुस्त' की पूजा करते हैं, अवतारवादि नाम से राम, कृष्ण, विष्णु, हरि, आदि अनेक नामों का उपयोग करते हैं । कई बार अलग अलग देश - क्षेत्रों में नाम भी अलग अलग होते हैं । मूल धर्म के विविध संप्रदाय भी अपनी अपनी मान्यतानुसार अलग अलग प्रकार से पूजते हैं । मान्यता भेद : ईश्वर को मानने, पूजने आदि विषयों में सभी धर्मों की अपनी अपनी मान्यताएं भिन्न हैं । भिन्न भिन्न मान्यताएं रखकर मात्र एक ही ईश्वर को पूजते हों - ऐसा भी नहीं है । उनकी सैद्धांतिक मान्यता भिन्न है नामभिधान भिन्न हैं, पूजा करने की विधि में भी भिन्नता हैं, मंदिरों - मूर्तियों की रीति - प्रणाली भी भिन्न भिन्न हैं । फिर ऐसाभी कहा जाता है - व्यवहारिक भाषा में ऐसा भी बोला जाता हैं कि आखिर सबका भगवान तो एक ही है, चाहे किसी नाम से पुकारो । सब नाम से वाच्य ऊपरवाला तो एक ही है, नाम भेद है व्यक्ति भेद नही हैं । चाहे राम कहो या रहीम - दोनों एक ही है, सबका पिता परमात्मा तो एक ही हैं । इस प्रकार बोलचाल की भाषा में बोलना भिन्न बात है, जब कि अपना अपना सिद्धान्त मानना यह भिन्न बात हैं । ऊपर की भाषा के साथ जैन सहमत नहीं होते और न कभी होंगे । क्यों कि जैनों की अपनी स्वतंत्र विचारधारा हैं । स्वतंत्र रूप से जैन धर्मने बुद्धिगम्य विचार जगत को हजारों वर्षों से दिये हैं। ___ जैन सभी प्रकार से सभी अन्य धर्मों की मान्यता से भिन्न अपनी ही मान्यता रखते हैं, अतः वे समान मान्यता कैसे स्वीकार करें ? इतर दर्शन में ईश्वर स्वरूप जैन दर्शनाभिप्रेत ईश्वर की मान्यता १) जगत् कर्तृत्ववादी दर्शन ईश्वर १)जैन दर्शन ईश्वर को सृष्टि का को सृष्टि का रचयिता मानते हैं। सर्जक कभी नहीं मानता है । २) अन्य सभी एकेश्वरवादी हैं । २)जैन अनेकेश्वरवादी हैं, मात्र एक ही ईश्वर की सत्ता नहीं मानते हैं । ३) एक ही मूल ईश्वर पुनः पुनः ३)अवतार वाद सर्वथा न मानने वाले अवतार लेता हैं। . जैनोंका कथन है कि मोक्ष से भगवान नहीं लौटते । ४) ईश्वर बना नहीं जाता, वह तो ४)जैन धर्म की मान्यतानुसार तीर्थंकर सत्ताधारी होता ही हैं। नाम कर्म की साधना करके 313
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy