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- अरिहंत परमात्मा का शुद्ध स्वरूप
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विश्ववंद्य.. त्रिजगत्पूज्य... त्रिभुवनपति... अनंतोपकारी.. तारक...तीर्थंकर... परमेष्ठि परमेश्वर...परमनाथ... परमार्हन... परम पिता... परमात्मा को
अनंतानंत नमस्कार पूर्वकः.
यं शैवाः समुपासते शिव इति, ब्रह्मेति वेदान्तिनो । बौद्धा बुद्ध इति प्रमाणपटवः कर्तेति नैयायिकाः । । अर्हन्नित्यथ जैन शासनरताः कर्मेति मीमांसकाः । सोऽयं वो विदधातु वांछितफलं, त्रैलोक्यनाथः प्रभु ।
. भारतीय प्रसिद्ध दर्शनों में ईश्वर को मानने वाले सभी दर्शन अपनी अपनी विधि से जो मानते हैं उसके स्वरूप का इस श्लोक में वर्णन करते हुए कहते हैं कि शैवधर्मीजन् अपने भगवान को शिव कहकर पूजा करते हैं, वेदान्तवादी इसे ब्रह्मा के रुप में मानते हैं, बौद्ध अपने भगवान को बुद्ध कहते हैं, प्रमाणों में निपुण नैयायिक-वैशेषिक अपने मान्य ईश्वर को जगत् के कर्ता, संसार के रचयिता कहते हैं, जिनेश्वर परमात्मा को मानने वाले जैन धर्मी अपने भगवान को “अर्हन्" अरिहंत कहते हैं और मीमांसक भगवान - ईश्वर को मानते ही नहीं, वे कर्म को ही महत्व देते हैं - ऐसे त्रैलोक्यनाथ प्रभु सबको वांछित फल दने वाले बनो ।
इस स्तुति में इस प्रकार षड् दर्शन वादिओं की अपनी अपनी ईश्वर विषयक मान्यताएं प्रस्तुत की गई है । ईश्वरवादी अनेक हैं । सांख्य दर्शन अपने इष्ट को शुद्ध पुरूष के रूप में पहचानते हैं । इस श्लोक में सांख्य दर्शन का उल्लेख नहीं है । सांख्यों मे दो भेद हो गए हैं । प्राचीन सांख्य ईश्वर को मानते थे, अतः वे सेश्वर सांख्य कहलाते थे, जब कि अर्वाचीन सांख्य निरीश्वर सांख्य कहलाते हैं । “वैदीक” धर्म वेदानुसार जिसे निरंजन - निराकार ईश्वर कहते हैं, मुसलमान जिसे अल्लाह खुदा के रूप में अभिवादन करते हैं, ईसाई जिसे God कहेकर God Father के रूप में अथवा Messenger of God भगवान के दूत के रूप में मानते हैं, सिख जिसे कतरि कह कर वही जगत त्त्म कर्ता है-इस अर्थ में पूजते हैं, कतरि पंथी सांइ नाम का उपयोग ईश्वर के अर्थ में करते हैं, पारसी धर्मावलम्बी
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