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________________ बात रुचिकर भी नहीं लगेगी । वहाँ तो वेदवादी कहते हैं कि हमें कोई आपत्ति नहीं है । हमारे वेद में “नमः कुम्भकोरेभ्यः कुलालेभ्यश्च" अर्थात् कुम्हार और कुलाल जैसे ईश्वर को भी नमस्कार हो । कुम्हार की अर्थ में ईश्वर की स्तुति करते हैं । यह स्थिति कुम्हार की तरह ईश्वर की कृति पर प्रकाश डालती है, परन्तु उपमा देने में साद्दश्यता तो देखनी चाहिये या नहीं? जैसे कुम्हार मिटटी लेकर दंड-चक्र-चीवरादि की सहायता से घड़ा बनाता है, वैसे ही ईश्वर यदि सृष्टि की रचना करता हो तो उसने सृष्टि बनाने के लिये मिट्टी आदि की तरह कौन से मूलभूत पदार्थ उपयोग में लिए थे? किन वस्तुओं या मूलभूत पदार्थों के संयोजन से सृष्टि बनाई थी ? जैसे कुम्हार मिट्टी नहीं बनाता, मिट्टी तो पहले से ही अपना अस्तित्व रखती है, उसी प्रकार पानी आदि भी अपना अस्तित्व रखते हैं, कुम्हार तो मिट्टी को पानी में भिगोकर घूमते हुए चक्र पर फिराते फिराते मात्र आकार देता है ? क्या इसी प्रकार ईश्वर. तो मात्र आकार ही देता है ? तब तो मूल पदार्थों की सत्ता हाथ में से निकल जाएगी, और मिट्टी, पानी, पृथ्वी, आकाश, वायु, अग्नि आदि मूलभूत पदार्थों की सत्ता ईश्वर के हाथ में नहीं रहेगी, क्यों कि ईश्वर ने इन्हें बनाया नहीं है, बल्कि मात्र इनकी सहायता लेकर अन्य पदार्थ बनाए हैं, तब मिट्टी, पृथ्वी, वायु, अग्नि आकाशादि मूलभूत पदार्थ किसके द्वारा निर्मित माने जाय ? क्या ये किसी अन्य ईश्वर द्वारा निर्मित मानें ? -ठद आप हाँ कहते हैं, तो जो आपके मतानुसार ईश्वर एक ही है, वह एकेश्वर का पक्ष गिर जाता है, और यदि आप नही कहते हैं तो ईश्वर ने ये पदार्थ नहीं बनाए बल्कि इनकी सहायता से दूसरे पदार्थ बनाए है, यह बात सिद्ध हो जाती है । तो फिर शून्य सृष्टि में मिट्टी-पानी-पृथ्वी-अग्नि-आदि पदार्थ आए कहां से ? किसने बनाए ? और इन पदार्थों की सहायता से ईश्वरने जीव सृष्टि कैसे बनाई. ? क्या कुम्हार मीट्टी से मानव बना सकेगा ? नहीं, संभव नहीं हैं । यदि शक्य होता तब तो कुम्हार बनाए या ईश्वर बनाए दोनों में कोई अन्तर ही नहीं होता । एक जड़ और दूसरा चेतन है । तो फिर जड़ मिट्टी में से मनुष्यरुपी चैतन्य जीव सृष्टि कैसे बनी ? तो क्या ईश्वरने जड-अजीव में से ही सारी जीव सृष्टि की रचना की है ? यदि जड पदार्थों में ऐसा परिवर्तनशील स्वभाव होता तब तो ईश्वर की भी आवश्यकता न होती और पदार्थ स्वयं ही इस प्रकार परिणत हो गए होते, परन्तु पदार्थों में तो वे गुणधर्म ही नहीं है, तो फिर कहां से होंगा ? क्या आप यह कहना चाहते हैं कि ये तो ईश्वर ने स्वसामर्थ्य से 304
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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