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________________ संबंध है, इसका संबंध तो मन के साथ है । जैसे अन्य भी देवी-देवता-भूत-देवताभूत प्रेतादि संकल्प या मंत्रादि के प्रयोग मात्र से एक स्थान पर बैठ बैठे ही दूसरे स्थान का कार्य कर सकते हैं, क्या वैसे ही तथाकथित सर्वशक्तिमान आपका ईश्वर नहीं कर सकता ? तब तो वे क्या बुरे है ? उन्हें ही ईश्वर क्यों न मान लेते? तब तो कहते हो कि ऐसा तो कैसे हो सकता है, मानना तो है ईश्वर को ही । ठीक है, तो ईश्वर को ही सृष्टि के कार्यो का कर्ता मानो, पर संकल्प करने के लिये तो लघु शरीर भी तो चल सकता है न ? और लघु शरीर तो सर्व विश्वव्यापी नहीं हो सकता । तब तो ईश्वर को एक देशीय - एक देश व्यापी और एक ही स्थान पर रहने वाला मानना पड़ेगा । वहां से बैठे बैठे ईश्वर संकल्प करते रहें और सृष्टि के कार्य सम्पादित होते रहें । यह पक्ष गले उतर गया है - ऐसा तो लगता है परन्तु यदि मान लोगे तो आपके सिद्धान्त का ईश्वर का सर्व व्यापीपन मानने में आपको ही आपत्ति होगी । इसे अब कैसे मानोगें ? इस प्रकार देखते हैं तो यह तो वही मेंढक खेल हो गया. - एक को पकड़े तो दूसरा भाग निकलता है । क्या किया जाए? कहा है न कि ऊंट के अठारहों अंग टेढ़े-मेढ़े-एक भी अंग सीधा नहीं - ऐसी ही बात यहां भी हैं। जैन दर्शनाभिप्रेत ज्ञान की व्यापकता : जैन-दर्शन में अरिहंत तीर्थंकर भगवान को ही ईश्वर तो क्या परमेश्वर माना गया है | जब चारित्र्य जीवन की साधना में ये महापुरुष घोर तपश्चर्या करते हुए और घोर उपसर्ग सहन करते करते प्रबल कर्म निर्जरा करते करते चार घनघाति कर्मों का क्षय होता हैं तब इन्हें वीतरागता और केवलज्ञान-केवलदर्शन - अनंत वीर्यादि शक्तियां प्राप्त होती हैं । ऐसे अनंतज्ञानी परमेश्वर जिस भूमि में जहां बिराजमान होते हैं वहां से भी ज्ञान योग के बल से समस्त ब्रह्मांड अनंत विराट विश्वलोक और अलोक सब कुछ एक समय-एक साथ देखते हैं और जानते हैं । उनके अनंतज्ञान में ज्ञातव्य पदार्थों में से, संपूर्ण संसार में से एक भी पदार्थ अथवा वस्तु शेष नहीं रहती, क्यो कि जगत के पदार्थ जितने अनंत है, उन सभी को जानने योग्य परमात्मा का ज्ञान भी अनंत और दर्शन भी अनंत होता है, फिरः पदार्थ ज्ञान के विषय बने बिना कैसे बच सकते हैं ? 295
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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