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________________ फूल-पत्ते आदि विशालकाय कार्य करने में ईश्वर को कितना शारीरिक श्रम उठाना पडता होगा ? और जितने बड़े कार्य उतना ही अधिक समय भी लगेगा कि नहीं? तब तो वेद-वेदांत में यह समय भी उल्लेखित होना चाहिये कि पृथ्वी बनाने में ईश्वर को इतने वर्ष लगे, पर्वत, समुद्र आदि बनाने में इतने इतने वर्ष बीते - परन्तु ऐसा कहीं भी संकेत मात्र तक नहीं है । तब क्या समझा जाए ? और इस प्रकार इतने बड़े बड़े और एक एक कार्य देह के व्यापार से शारीरिक श्रम से हों और वे भी क्रमशः हो तो समय तो निश्चित् रुप से लगेगा ही । और यदि बिना किसी क्रम के एक साथ हो जाएं तब तो फिर शारीरिक श्रम निरर्थक ही जाएगा? यदि दैहिक व्यापार शारीरिक परिश्रम से एक एक कार्य करना हो तो पर्वत-पृथ्वी आदि निर्माणकार्य ईश्वर ने एकेले ही किया था या किसी अन्य की सहायता ली थी ? यदि सहायता ली थी - ऐसा कहते हैं तो ईश्वर की सर्वशक्तिमत्ता पर पानी फिर जाता है । और यदि इस तर्क को स्वीकार नहीं करते हैं तो सभी अनंत कार्य ईश्वर ने बिना किसी की सहायतात के Single handed अकेले ही किये हो तो अनंत वर्ष लगे होंगे या नहीं ? एक एक कार्य में यदि एक-एक वर्ष गिनते हैं तो अनंत कार्यो को करने में अनंत वर्ष लगें या न लगें ? और इन अनंत वर्षों का लगना यदि स्वीकार करते हो तो सृष्टि का प्रलय कैसे स्वीकार करना? एक ओर तो युग युग में ईश्वर सब कुछ महा प्रलय कर नवीन सृष्टि की रचना करते हों, अभी तो बड़ी मुश्किल से एक कार्य करते करते सृष्टि की रचना करते होते हैं, कि इसी बीच महाप्रलय कर संहार भी कर लेते हैं ? तो ऐसा अचानक बीच में ही महा प्रलय कौन कर डालता हैं ? ईश्वर ही या कोई अन्य ? ईश्वर सवंय तो प्रलय कर नहीं पाता होगा क्यों कि वह तो स्वयं ही रचना कार्य में व्यस्त होगा? - उसके तो कई कार्य अभी अधूरे ही पड़े होंगे वहां बीच में वही ईश्वर संहार-कार्य, प्रलय जैसा कार्य कैसे कर पाता होगा? क्या वह नहीं जानता कि ऐसा करने में उसका परिश्रम वृथा सिद्ध होगा ? उसके किये - कराये महल धूल धूसरित न हो जाएंगे ? निरर्थक बिना प्रयत्न के वह ऐसा क्यों करने लगा ? यह तो तभी संभव है जब उसे यह एहसास हो जाए कि, बनाते बनाते मुझसे यहां भूल हो गई है, कार्य गलत हो चुका है, इसे मिटा देना आवश्यक है ? क्या इसलिये वह प्रलय करता है ? मान लो मिटा देने के खातिर भी करता हो तो क्या सब कुछ मिटा दे, सब का संहार कर दे या जितना बिगड़ा हो इतना ही मिटाने के लिये महा प्रलय करता है? तो यहाँ तो कहते हैं कि महा प्रलय ही कर डालता है जिससे, पीछे कुछ भी शेष 293
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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