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________________ है, सारी की सारी कहाँ घड़े के रुप में बन जाती है, इसी प्रकार ईश्वर के मन में इच्छा होने मात्र से कार्य या लीला थोड़ी ही संभव है ? इच्छा हो वहाँ तक तो चिंता नहीं, भले ही हो, क्यों कि कारण तो ईश्वर के मन में इच्छा के रुप में पड़ा ही रहेगा । इतने मात्र से कौन सा कार्य हो जाने वाला है ? इसी नियम के अनुसार ईश्वर की इच्छा मात्र से ही या संकल्प मात्र से ही सृष्टि रचना नहीं हो जाती है यह निष्कर्ष स्पष्ट हो जाता है, तो फिर ईश्वर की इच्छा मात्र से सृष्टि हो जाती है यह कथन सत्य से कितना परे है ? अर्थात् इसमें तनिक भी सत्यता नहीं है । दूसरी ओर प्रत्यक्ष प्रमाण से भी यह बात जगत के सभी जीवों में सत्य स्वरुप में दिखाई देती है कि सब की इच्छा के अनुसार अथवा इच्छा होने मात्र से सब कार्य नहीं हो जाता । कार्य-कारण के अन्योन्याश्रित संबंध में कार्य का कारण के साथ संबंध अनिवार्य है, परन्तु कारण का कार्य के साथ नहीं । कार्य हो तो कारण अवश्य होगा परन्तु कारण होने पर कार्य हो और न भी हो उदाहरण के लिये धुआं हो तो अग्नि अवश्य होगी, परन्तु अग्नि हो तो धुआँ हो और न भी हो जैसे लोहे के तपाए हुए गोले में अग्नि तो है, परन्तु धुआँ नहीं होता है । इसी प्रकार यहाँ प्रस्तुत प्रकरण में देखो कि लीला होगी तो उसके कारण भूत इच्छा अवश्य होगी । हाँ, इच्छा हो तो लीला हो भी सकती है, और न भी होने की संभावना है । परन्तु क्या ये दोनों - इच्छा और लीला सच्चे अर्थ में कारण कार्य भाव के संबंध में हैं ? क्या लीला कार्य का कारण ईश्वरेच्छा ही है, या कोई अन्य कारण भी है । यदि कोई अन्य कारण भी है तो वह कौन सा कारण है ? नियम ऐसा है कि 'कार्यनियतपूर्ववृत्तित्व कारणम्' - अर्थात् कार्य के ठीक नियत पूर्ववृत्ति रहने वाले हो उसे कारण कहते । यहाँ लीला कार्य के ठीक नियत पूर्ववृत्ति का कारण कौन सा है ? इच्छा या सामर्थ्य या ईश्वर स्वयं इन सभी प्रश्नों के उत्तर में सशरीरी ईश्वर तो जगत कर्तृत्ववादी मानते ही नहीं और सशरीरी ईश्वर ही न हो तो फिर इच्छा और सामर्थ्य कैसे संभव हो सकते हैं ? क्यों कि ये दोनों तो शरीरधारी में ही संभव हो सकती हैं । अशरीरी में इच्छादि की कभी भी संभावना नहीं हो सकती क्यों कि अशरीरी की तो मुक्तावस्था है सदैव के लिये मुक्तावस्था में रहे हुए सिद्ध 1 - • बुद्ध या मुक्त अशरीरी ही कहलाते हैं । मन तो शरीरधारी में ही होता है और समनस्क को ही इच्छाएँ होती हैं । इच्छा का उत्पत्ति स्थान एक मात्र मन ही है - शरीर नहीं । कार्यशक्ति स्वरुप सामर्थ्य भी सशरीरी में ही होता है । अशरीरी 280
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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