________________
मार्ग पर चलकर योगी बन जाओ जिससे मन स्वतः वश में हो जाएगा । बस, फिर इच्छा ही नहीं जगेगी और जब इच्छाएँ ही नहीं जगेगी तो उनकी तुष्टि पूर्ति हेतु भी आपको परिश्रम नहीं करना पड़ेगा । इस प्रकार इच्छाओं की पूर्ति हेतु जब कदम ही नहीं उठाओगे तो दुःखी होने से भी बच जाओगे ।
ईश्वर इच्छा निरोध क्यों नहीं करते ?
वाह भाई वाह ! उपदेश कितना सुंदर है । बिलकुल सही बात है । सभी दुःखो का मूल इच्छाएं हैं, पर उसका घर भी ईश्वर ही है - यह कैसी विचित्रता ? ऐसा उपदेश देने वाला ईश्वर सर्वज्ञ है, स्वयं जानता है तो वह अपनी इच्छाओं का• निरोध क्यों नहीं करता ? इच्छाएँ ईश्वर को भी होती है उसके मन में भी इच्छाएँ जागृत होती हैं - इसका प्रमाण ही यह है कि वह सृष्टि रचना या प्रलय आदि की लीलाएँ करता है । 'ईश्वरेच्छा बलीयसी' - ये शब्द तो स्पष्ट लिखे गये हैं और इसीलिये धर्मशास्त्र भी डंके की चोट कहते हैं कि ईश्वर की इच्छा ही बलवान है, उसकी इच्छा के अनुरूप ही संसार का घटनाचक्र चलता है । इच्छाएँ होती हैं इसीलिये ईश्वर लीला करता है, इच्छाएँ ही यदि न होती तो ईश्वर लीला ही नहीं करता । इच्छा कारण है और लीला कार्य है । मिट्टी और घड़े या अग्नि और धुएँ की भाँति इच्छा और लीला में कारण कार्य भाव संबंध है । इच्छा से ही लीला होती है ।
कार्याऽभावे कारणाऽभाव : ? वा कारणाऽभावे कार्याऽभाव : ? कार्य के अभाव में कारण का अभाव समझें या कारण के अभाव में कार्य का अभाव समझें। दोनों में से क्या समजें ? किसके बिना कौन रह सकता है ? कारण के बिना कार्य या कार्य के बिना कारण ? धुएँ के बिना अग्नि या अग्नि के बिना धुआँ ? इसका स्पष्ट उत्तर यह है कि अग्नि - कारण के बिना धुएँ-कार्य रूप में रह ही नहीं सकता, परन्तु धुएँ के बिना अग्नि तो रह सकती है । इसी प्रकार यहाँ भी समझना है कि इच्छा कारण है । कारण के बिना कार्य नहीं होता है अतः इच्छा कारण के बिना लीला - कार्य संभव ही नहीं, हां, इच्छा लीला के बिना रह सकती हैं, क्योंकि यह कारण है ।
1
इस पर से इतना तो स्पष्ट हो ही जाता है कि इच्छा होने के साथ यह आवश्यक नहीं कि लीला हो ही जाएगी । नहीं, मिट्टी पड़ी है तो घड़ा बन ही जाएगा, ऐसी बात नहीं है । जगत में मिट्टी तो पृथ्वी पर चारों ओर बहुत पड़ी
279