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________________ तब तो वह स्वयं भविष्य को भी तो जानता ही होगा न ? क्या वह नहीं जानता होगा कि जिस सृष्टि का प्रलय मैं करता हूँ, वह मुझे पुनः बनानी पडेगी ? जो है उसे समाप्त कर पुनः रचना करने का श्रम करने के बजाय जो है वही क्या बुरी है ? निर्मित किसी वस्तु को समाप्त कर दूसरी कोई भी नवीन वस्तु कोई कब बनाता है ? या तो पूर्व रचित वस्तु में कोई बड़ी भूल हो गई हो, सोचा था कुछ और हुआ कुछ और या चिंता की स्थिति में बनाई हो और उसमें कोई त्रुटि रह गई हो । बड़ी भूल के भी अनेक प्रकार हैं । एक कलाकार गणपति की मूर्ति बना रहा था । उसने खूब परिश्रमपूर्वक एक अति सुन्दर मूर्ति बनाई थी, परन्तु किसी व्यग्रता चिंता के कारण भूल हो गई और नाक के स्थान पर आगे सूंढ़ लगाने के बजाय पीछे पूँछ लगा दी जिससे गणपति के स्थान पर हनुमानजी की मूर्ति बन गई। अब क्या हो ? लो कोई बात नहीं । हनुमानजी भी देव ही है न ? बाद में पुनः बिखेर कर गणपति बनाए ? ऐसी कोई बड़ी भूल हुई हो तभी कार्य पुनः किया जाता है। ईश्वर सृष्टि का प्रलय करता है और पुनः उसका निर्माण करेगा - इस से सिद्ध होता है कि ईश्वर को ऐसा लगा होगा कि सृष्टि की रचना में कोई बड़ी गंभीर भूल रह गई है अतः चलो फिर से बना लूँ । यदि इस पक्ष को स्वीकार करते हैं तो ईश्वर की सर्वज्ञता में शंका हो जाती है | क्या सर्वज्ञ ईश्वर के द्वारा ऐसी भूल होना संभव है ? क्या सूर्य में भी अँधकार रहने की बात कभी सुनी है ? क्या ईश्वर सर्वज्ञ हो और भूल भी कर ले ? तब तो भूल करे उसे भगवान मानें अथवा यह मानें कि जो भगवान हो उसमें भूल हो जाती हैं, वह भूल कर बैठता है । तब यह क्यों कहा गया है कि To err is human इसके बजाय यह क्यो नहीं कहा गया कि To err is God, or To err is divine ? कौन सा पक्ष सच्चा मानें ? इन दोनों पक्षों में से एक भी मानते हैं तो भगवान का भगवानपन ही चला जाता है और भूल करे उसे यदि भगवान मानने की तैयारी हो तो नित्य सैंकड़ो मनुष्य अनेक भूल करते हैं, तो उन सब को भगवान क्यों नहीं मान लेते ? तब तो स्पष्ट मना करते हो । कोई बात नहीं, तो क्या इस बात को स्वीकार करते हो कि भगवान हो तो भूल भी हो सकती हैं ? नहीं, नहीं, तब तो सृष्टि बनाई उसमें भूल अवश्य रही होगी - इसीलिये तो संहार कर दूसरी बार नई बनाने की बात करते है, वरना ऐसा क्यों कहें ? यदि भूल को ईश्वर में स्वीकार करते हैं तो उसका ईश्वरत्व ही नष्ट हो जाता है । सर्वज्ञ हो और भूल करे - सर्वथा असंभव है । यदि सृष्टि में भूले ही दिखाई पडती हो तो इस 1 276
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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