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________________ में भी उसे कौन सी नरक मिलेगी ? सातवी से आगे आठवी नरक तो है ही नहीं । एक पंचेन्द्रिय जीव की हत्या के पाप से सातवी नरक में जाना पड़ता है तो अनंत जीवों का संहार करने वाले को कौन सी गति मिलनी चाहिये ? वह किस नरक में जाना चाहिये ? पाप तो पाप ही हैं । पाप सभी के लिये समान स्वरुप में होता हैं । जैसे विष 1 विष ही हैं । विषपान करने वाले सभी पर समान प्रभाव होता है । विष किसी के साथ भेद-भाव नहीं वरतता । ऐसा ही पाप के विषय में भी समझें । पाप भी किसी के साथ भेद-भावपूर्ण व्यवहार नहीं करता है । पाप कर्म जो भी करेगा वह भोगेगा भी । पापकर्ता भले ही छोटा व्यक्ति हो या बड़ा व्यक्ति हो, सामान्यजीव हो या विशेष जीव हो - पाप कर्म किसी के प्रति भेद-भाव या पक्ष पात नहीं करता है । महावीर स्वामी तीर्थंकर भगवान थे, पर उनको भी अपने पूर्वजन्मों में कृत पापकर्मों के फल चखने ही पड़े थे, यहाँ तक कि अपने अन्तिम भव में भी पूर्व के घोर पाप कर्मों के पलस्वरुप दारुण कष्ट सहन करने पड़े थे इस में दो मत ही नहीं हैं। यह नियम छोटे बड़े सभी के लिये समान रुप से लागू होता है - भले ही वह ईश्वर महेश्वर क्यों न हो ? यदि ईश्वर भी अनंत जीवों का संहार करता है महाप्रलय करता है तो वह भी अनंतगुने पाप का भागी होता है, और इसके परिणामस्वरुप वह भी नरकगामी होता है । किस नरक में जाए- कितनी बार जाए? कैसी नरक - वेदना भोगे और उसका कितना उत्पीडन होगा ? यह तो ज्ञानी - महात्मा ही जानें । - - दयालु ईश्वर महा प्रलय क्यों करे ? हम सब ईश्वर को कृपालु दयालु- करुणामय आदि शब्दों से संबोधित करते हैं । कुरानवादी अल्लाह के अनुयायी भी उसे रहीम कहकर करुणा, दया करने वाले के अर्थ में ही स्वीकार करते हैं । बाइबिल को मानने वाले ईसाई भी Mercy शब्द से संबोधित करते हुए कहते हैं Oh God isThou art Merciful अर्थात्, हे ईश्वर तुं दयालु है, Mercy thy name is God दया का नाम ही ईश्वर है | God is the father of the world ईश्वर जगत का पिता है । ईश्वर को पिता तुल्य दयालु मानने वाले उसकी इतनी इतनी प्रशंसा करने वाले क्या उसी के हाथों पुनः पुनः सृष्टि का प्रलय मानते हैं ? ऐसा क्यों ? ईश्वर सृष्टि का संहार क्यों करता है ? यदि उनका ईश्वर स्वयं सर्वज्ञ है, 275
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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