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परमपिता, जगत-पिता कहते हैं, उसी ईश्वर को ही प्रलय कर्ता- संहर्ता कहने में हमें संकोच भी नहीं होता है ? शर्म भी नहीं आती है ? ईश्वर की क्या यह क्रूर मजाक नहीं है ? जगत निर्माता जगतपिता को जगत का ही संहारक प्रलयकर्ता कैसे मानें? ऐसा मानने का कोई कारण तो होना चाहिये नं ? खैर, पलभर हम मान भी लें तो किस कारण से और क्यों ईश्वर सृष्टि का प्रलय करता है ? कोई कारण तो होना चाहिये न ? या क्या बिना किसी कारण के वह ऐसा करता है । तो क्या आप जैसे महातार्किक बिना कारण कार्य की सत्ता स्वीकार करेंगे भला ? कारण ढूँढ ढूँढकर तर्कवादी बने हुए आप जैसे बुद्धिशाली यहाँ हाथ ऊँचे कर के बुद्धि के द्वार बंद कर कह दें कि नहीं नहीं इसमें तो कोई कारण नहीं है, एक मात्र ईश्वरेच्छा ही प्रबल कारण है, तो क्या यह कारण देने में आपकी विद्वत्ता सिद्ध होगी? क्या आपकी तर्कशक्ति कसौटी पर सही उतरेगी ? नहीं, सर्वथा असंभव बात हैं ।
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चलो ! ईश्वरेच्छा को कारण गिनते हो तो फिर किस प्रकारकी ईश्वरेच्छा कारण बनी ? प्रश्न यह भी होगा कि ईश्वर एक इच्छावाला हैं या अनेक इच्छा वाला है ? ईश्वर को सर्व इच्छा सम्पन्न मान सकते हैं तब तो अच्छी और बुरी सभी प्रकार की इच्छाएँ ईश्वर को होती होंगी ? जिस प्रकार हमें अच्छी और बुरी सभी प्रकार की इच्छाएँ होती हैं, उसी प्रकार सभी तरह की इच्छाएँ ईश्वर को भी होती ही होगी ? यदि इसका उत्तर नकारात्मक हैं तो फिर महा प्रलय की संहार इच्छा को अच्छी समझें या बुरी समझें ? ऐसी प्रलयकारी संहारेच्छा को यदि अच्छी समझी जा सकती है तब तो बच्चे की हत्या कर डालने की माता की इच्छा को अच्छी समझने में क्या आपत्ति है ? समाजमें ऐसी माताओं को शाबाशी के साथ साथ मान-सम्मान मिलना चाहिये, पुत्र- हत्यारि माता को पुरस्कृत करना चाहियेपरन्तु हमारे मानव समाज में आज तक ऐसा कभी हुआ है क्या ? जो माता स्वयं संतान को जन्म देती है, उसे भी अपनी ही संतान की हत्या करने का कोई अधिकार नहीं है । भले ही वह जन्मदाता माता कहलाती हो, क्यों कि यह भी पंचेंद्रिय वधस्वरुप घोर पाप हैं । तो क्या ईश्वर को यह घोर पाप नहीं लगता ? माता यदि मार भी डाले तो एकाद संतान को मारे और उसे १ जीव के ही वध का पाप लगे और ऐसे पंचेंद्रिय वध से उस माता का जीव नरक का कर्म उपार्जन करे; परन्तु समस्त सृष्टि में तो अनंत जीव हैं और अनंतज़ीवों के वध का पाप ईश्वर को अनंतगुना लगता होगा, तो ईश्वर की कौन सी गति होती होगी ? नरक
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