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________________ स्थितियों का - पूर्व - पश्चिम का मेल कैसे संभव हो सका है ? कारण यह है कि महा प्रलय हो जाने के बाद सृष्टि या सृष्टिरचना का कोई कार्य शेष नहीं होगा तब ईश्वर का अस्तित्व किस प्रकार मानें ? तब्र ईश्वर कहां रहता होगा ? क्या करता होगा और उस ईश्वर की इच्छा का क्या हुआ होगा ? अब इच्छा क्यों न होती होगी ? तो क्या ईश्वर अब सर्वथा इच्छारहित हो गया ? यदि हाँ- तो इच्छा रहित होने का कारण क्या ? क्या इस सृष्टि रचना कार्य से थकान आ गई, उब गया ? यदि ईश्वर थक जाय तो उसकी सर्वशक्ति सम्पन्नता का क्या हुआ ? कहां चली गई ? ईश्वर की नित्यता का क्या ? अब सृष्टि और सृष्टि रचना का कार्य ही न रहा तो आप लोग जिस ईश्वर का आधार ही अब तक सृष्टि रचना तथा ईच्छा पर रखते थे, उस ईश्वर का अस्तित्व अब प्रलय के पश्चात कैसे मानना ? प्रलय के बाद ईश्वर की सत्ता मानने के पीछे अब कौन से प्रबल प्रमाण रह जाएंगे ? प्रलय क्यों करता है ? अब प्रश्न यह उठता हैं कि ईश्वर स्वनिर्मित सृष्टि का प्रलय संहार क्यों करता है ? जिस सृष्टि के निर्माण में अनंत काल व्यतीत हुआ है, और अभी तक तो जिसकी रचना पूर्ण ही नहीं हुई उस सृष्टि का बीच में ही संहार क्यों करता है? यह बात गले ही उतरती । इसके उत्तर में जगत् कर्तत्ववादी क्या कहेंगे ? इसका ठोस कारण वे क्या देंगे ? क्या इसमें भी मात्र ईश्वरेच्छा ही मानें ? क्या सभी प्रश्नों का एक ही उत्तर ईश्वरेच्छा ? क्या इसके सिवाय अन्य कोई बात ही नहीं है ? यह ऐसा उत्तर है जिसमें किसी की बुद्धि चलने का प्रश्न ही नहीं है ? ऐसे उत्तर देकर भी क्या आप तार्किक-शिरोमणि, तर्क चूड़ामणि, तर्कवागीश के विरुदों से सम्मानित होते हो - जो कितना उचित हैं ? यह तो जगत के समक्ष सिद्ध हो जाता हैं। सामान्य बुद्धि से भी विचार तो करो कि जो माता अपने गर्भ में स्वरक्त से जिस संतान का निर्माण करके धरा पर जन्म देती है, जिस संतान के प्रति अपार वात्सल्य से ही जिसके रक्त में से दूध बनकर स्तनों में उभरता है और जिस पर बालक काआधार है, ऐसी वात्सल्य ममतामयी माता क्या स्वयं ही अपनी संतान का गला घोंट देगी ? और हत्या कर दे या चीर कर खा जाए तो क्या उसे माता समझें या नरपिशाचिनी - राक्षसी समजें ? इसी प्रकार ईश्वर का विचार करो । जिस ईश्वर को हम माता-पिता 273
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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