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________________ यह भी सोचो कि भूतकाल में अनादि से लेकर आज तक अनंत वर्ष व्यतीत हो चुकने पर भी अभी तक सृष्टि रचना का कार्य पूर्ण होगा ? और यदि होगा तो क्या उसमें भी अनंत वर्ष लगेंगे ? अर्थात् अभी तक सृष्टि रचना का ही कार्य यदि अनंत वर्षों तक चलने वाला हो - (होगा) तो फिर मध्य में ही ईश्वर महाप्रलय कैसे करेगा ? यदि सृष्टिरचना का कार्य अनंत वर्षों तक चलता ही रहेगा और पूर्ण न होगा तो ईश्वर के सिर अपूर्ण कार्य करने का आरोप आएगा और यदि अपूर्ण सृष्टि करके बीच में ही प्रलय - संहार करेगा तो भी संहार करने का कारण क्या होगा ? कार्य पूर्ण किये बिना ही प्रलय क्यों ? सृष्टि समाप्त करने की बात यदि आप कहते हैं तो.. नित्यता पक्ष समाप्त हो जाता है और नित्यता पक्ष को बचाने के लिये सष्टि रचना का कार्य जारी रखने की बात करते हो तो प्रलय कार्य किसी भी प्रकार से सिद्ध नहीं होता है । दूसरी ओर ईश्वर को आप लोग सर्वज्ञ कहते हो और अनंत काल जैसे दीर्घकाल में भी उस समर्थ-सर्वशक्ति सम्पन्न ईश्वर से सृष्टि रचना का कार्य अपूर्ण है तो यह क्यों नहीं बताते कि अब किसका निर्माण शेष है ? तो फिर ईश्वर सृष्टि की रचना नित्य स्वरुप में करता है - ऐसा मानने या यह माने कि सृष्टि रचना का कार्य तो पूर्ण हो चुका है, अब तो वह मात्र संचालन करता है ? इसका कारण यह है कि नियंता भी ईश्वर ही है अतः अब तो मात्र संचालन ही करता है . इस बात पर एक बिन्दु तो सिद्ध हो गया कि सृष्टि रचना का कार्य पूर्ण हो चुका है - है न ? तो अब प्रश्न है कि यह कार्य कब पूर्ण हुआ? क्या अनंत काल बीता ? नहीं.... अनंत नहीं तो बताओ कितना ? वरना, इस सृष्टि को अनादि अनंत तो कह ही नहीं सकते हैं ? फिर तो इसे सादि-सान्त ही कहना होगा ? क्यों कि रचना जारी है । कभी तो प्रारंभ करता है और कभी वह महा प्रलय के रुप में इसका संहार भी करता है । तो जिसकी आदि भी हो और जिसका अंत भी हो उसे अनादि - अनंत कैसे मान सकते हैं ? मान ही नहीं सकते। यदि सृष्टि को अनादि अनंत नहीं मानते हो तो ईश्वर को नित्य कैसे मानोगे ? क्यों कि आपने तो ईश्वर का आधार ही सृष्टि पर रखा है । सृष्टि निर्माण करते रहने के सिवाय ईश्वर के पास और तो कोई कार्य ही नहीं हैं । उसका कार्य तो आपने निर्माण - संचालन और संहार ही बताया है । दूसरी बात यह हैं कि जो अझादि अनंत हो उसे ही नित्य कह सकते हैं । अब सृष्टि को तो बताया सादि और सान्त और ईश्वर को बताया अनादि - अनंत, तो इन दोनों विपरीत 272
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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