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________________ - दृष्टि से तो हम और ईश्वर सदृश ही रहे, फिर तो हमारे जैसे सामान्य व्यक्तिओं को भी ईश्वर क्यों न माना जाए ? और इस प्रकार मानते हैं तो एकेश्वर पक्ष का मेंढक कूद पडता है । कितनों को ईश्वर मानें । फिर तो सभी को ईश्वर मानना पड़े। अतः इस भय से बचने के लिये नित्यता का पक्ष पकडे रहते हैं, परन्तु यदि नित्यता का पक्ष पकड़े रखते हैं तो सृष्टि रचना के लिये सशरीरी होना आवश्यक है या नहीं ? यदि अशरीरी रहकर सृष्टि रचना करता है ऐसा मानें तो मुक्तात्मा, सिद्धात्मा जो सदा अशरीरी हैं, उन में अतिव्याप्ति हो जाती है । तब तो उन्हें भी सृष्टि की रचना करने वाले मानना पड़ेगा । दूसरी ओर यदि अशरीरी ईश्वर इच्छा मात्र से सृष्टि की रचना करता है यह पक्ष मानने लगे तो प्रश्न होता है कि इच्छा से कार्य निष्पत्ति होती है अथवा शरीर से होती है ? इच्छा विचारों की जनेता है परन्तु कार्योत्पत्ति करने का मुख्य कारण नहीं । सम्पूर्ण जगत में हम नित्य देखते हैं कि किसी की भी इच्छा होने के साथ ही, इच्छा मात्र से कार्य न हुए हैं न होते हैं । तो ईश्वर की इच्छा मात्र से सृष्टि कैसे हो गई ? इस प्रकार चारों ओर से घिर जाने वाले जगत् कर्तृत्ववादीगण निरुत्तर हो जाते हैं । 1 नित्यता पक्ष माननें में दोष दूसरी ओर ईश्वर को यदि नित्य माना जाए तो उसे किस स्वरुप में नित्य मानें ? शरीर सहित नित्य मानें या इच्छा के योग से नित्य मानें या अशरीरी रुप में नित्य मानें अथवा सृष्टि कर्ता के रुप में नित्य मानें ? इन में से किस अर्थ में ईश्वर को नित्य मानें ? प्रबल पक्ष कौन सा ? चलो, सशरीरी या अशरीरी पक्ष को एक ओर रख देते हैं, पर इच्छा और सृष्टिकर्ता पक्ष तो ईश्वरवादिओं को भी मान्य है और इस द्दष्टि से भी विचार करें तो प्रश्न होगा कि क्या ईश्वर नित्य है ? या ईश्वर की इच्छा ? ईश्वर यदि नित्य हो तो इच्छा को नित्य मानने की आवश्यकता नहीं हैं क्या ? या फिर ईश्वर इच्छा के साथ नित्य है क्या ? अथवा क्या ईश्वर की इच्छा भी नित्य है वस्तु स्थिति क्या है ? यदि इच्छा अनित्य है, ईश्वर इच्छा के कारण क्या नित्य नहीं है ? इसका अर्थ यह हुआ कि कभी ईश्वर इच्छा रहित भी होता है । तो इच्छा रहित ईश्वर क्या करता होगा ? और यदि इच्छा तत्त्व ईश्वर में से चला जाय तो फिर सृष्टिरचना कैसे होती होगी ? क्यों कि इच्छा के बिना सृष्टि होती नहीं, इच्छा से ही सृष्टि होती है; तब ऐसी स्थिति में क्या समझा जाए? ईश्वर से सृष्टिरचना होती है या इच्छा मात्र से ? इन दोनों में से कौन सा पक्ष सही 268
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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