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________________ है ? यदि इच्छा मात्र से सृष्टिरचना होती है तो ईश्वर की कीमत कुछ भी नहीं रहती है । इस प्रकार तो इच्छा का महत्व बहुत बढ़ जाता हैं | परन्तु यह इच्छा क्या है ? जड़ है या चेतन ? द्रव्य है या गुण वास्तव में जड़ और चेतन - ये दो द्रव्य ही जगत के मूलभूत द्रव्य हैं । इन में इच्छा द्रव्य भी नहीं है कर्ता शक्ति भी नहीं है । जो द्रव्य होता है उसी में कर्तृत्व शक्ति होती है, इसलिये द्रव्य को ही सक्रिय कहा गया है । न तो इच्छा को चेतन कह सकते हैं न चेतन को जड़ कह सकते हैं । क्यों कि दोनों द्रव्य रुप से इच्छा नही और द्रव्य नहीं है तो गुण स्वयं कर्ता नहीं होते हैं तो ईश्वर की इच्छा मात्र से सृष्टिरचना कैसे हो गई ? ___ अथवा ऐसा कहो कि ईश्वर कर्ता है, इच्छा तो मात्र निमित्त है, तो इच्छा के निमित्त योग से किसी में भी कर्तत्वपन आ जाता है - ऐसा मानते हो तो सामान्य मनुष्यादि जो जीव है, उन में भी आपत्ति आएगी, क्यों कि सामान्य मानव में भी इच्छा हो सकती है और इस इच्छा के कारण मानव में भी सृष्टिरचना संबंधी कर्तृत्व शक्ति आ जाएगी ? तब तो सभी जीव इच्छा का निमित्त कारण लेकर सृष्टि की रचना करने लग जाएँगे । फिर तो सभी जीवों को ईश्वर कहने का समय आ जाएगा । यह तो और भी कठिनाई बढ़ जाएगी । अब क्या हो ईश्वरवादी तो ठीक शिकंजे में आ गए हैं । दूसरी ओर इच्छा के कारण ईश्वर नित्य है और सृष्टि रचना करने की नित्य इच्छा के कारण ही ईश्वर इच्छानुसार सृष्टि की रचना कर सकता है - ऐसा भी यदि आप कहते हैं तो आपत्ति यह आएगी कि ऐसी सृष्टिरचना करने की नित्य इच्छा ईश्वर में हैं अतः ईश्वर सृष्टि की रचना करता है । ऐसा मानते हैं तो नित्य ईश्वर नित्य काल अर्थात् हर समय सदा काल सृष्टि की रचना करता ही रहे। सृष्टि रचना प्रतिपल न करे. और निवृत्त होकर बैठा रहे तो उसकी नित्यता चली जाए और नित्य ईश्वर यदि सृष्टिरचना करता ही रहे तो आज भी सृष्टि अधूरी-अपूर्ण ही माननी पड़े ? नित्यता काल के साथ संबंध रखती है,अतः नित्य का काल सापेक्षित अर्थ यह होता है कि जो अनादि अनंत हो वह नित्य जिसकी न आदि हो, न अंत हो वह नित्य कहलाता है, अर्थात् ईश्वर अनादि अनंत नित्य कहलाता है । चलो, घड़ीभर मान लेते हैं, पर इस नित्यता के आधार पर भूतकाल में कितना काल बिता ? कितने वर्ष बीते ? अनादि अर्थात् जिसकी कोई आदि ही नहीं ऐसे अनादि काल से ईश्वर सृष्टि रचना का कार्य करता ही चला आ रहा है। 269
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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