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रचना करते हैं वे ईश्वर । इस प्रकार तो पुनः दो ईश्वरों की सत्ता टकराएगी । तब इन में से किस ईश्वर को हम सर्वज्ञ - शाश्वत गिनें ? उत्पादित विराट पुरुष स्वरुप ईश्वर सर्वज्ञ है अथवा अनुत्पन्न मूल ईश्वर ब्रह्माजी सर्वज्ञ हैं ? यदि ब्रह्माजी को सर्वज्ञ मानें और विराट पुरुष को सर्वज्ञ न मानें तो सर्वज्ञता के अभाव में वे सृष्टि की रचना कैसे करेंगे ? और सर्वज्ञ नहीं - बल्कि अल्पज्ञ है ऐसा ईश्वर यदि सृष्टि की रचना करेगा तो सृष्टि में कितने दोष रह जाएँगे ? अल्पज्ञ को सम्पूर्ण सृष्टि की रचना करने का उत्तरदायित्व, सौंप कर सर्वज्ञ ईश्वर हाथ पर हाथ धरकर यों ही बैठे रहें तो क्या अल्पज्ञ ईश्वर उन्हें बार बार पूछने जाएँगे ? क्या बार बार पूछ पूछकर सृष्टि बनाएंगे ? यहां क्या करूँ ? अब कैसे करूँ ? आदि पूछते रहेंगे तब तो बड़ी ही हास्यास्पद स्थिति हो जाएगी।
नित्य पक्ष मानने में दोष :
जगत कर्तृत्ववादी ईश्वर को नित्य मानते हैं, आईये ! इस पक्ष पर भी अपना ध्यान दें दें । मानो कि ईश्वर नित्य है तो क्या वह सृष्टि-रचना काल में ही सृष्टि बनाता है या निरन्तर सृष्टि रचना करता ही रहता है ? यदि निरन्तर - सदाकाल वह सृष्टि रचना करता ही रहता हो तो अनंतकाल व्यतीत हो जाने के बाद भी अभी तक सृष्टि रचना का कार्य पूर्ण नहीं हुआ ? अभी तक अधूरी ही हैं - ऐसा ही कहना पड़े न ? क्या माना जाय ? सदाकाल ईश्वर सृष्टि रचना करता ही रहता हो तो सदाकाल उसके मन में इच्छाएँ भी चलती ही रहती होगी न ? अर्थात् इच्छाएँ न्यून या अधिक हैं या सृष्टि रचना के पदार्थ-कार्य अधिक है? यदि मानते हैं कि सदाकाल रचना कार्य करते ही रहते हैं तो ईश्वरेच्छा और संकल्प मात्र से एक ही समय में सृष्टि की रचना की गई-यह बात कैसे मानी जाएगी ? और यदि न मानते हैं तो ईश्वरेच्छा बलीयसी - यह पक्ष नष्ट हो जाता है । तब. फिर संकल्प अथवा इच्छा करने मात्र से क्या निर्माण हुआ ? संपूर्ण सृष्टि या अर्ध-सृष्टि ? संपूर्ण क्यों नहीं - अपूर्ण ही क्यों ? क्या इश्वर की इच्छा ही अपूर्ण-आधी थी जिसके कारण अर्ध - अपूर्ण सृष्टि का निर्माण हो पाया ? और यदि कहते हो कि ईश्वरेच्छा ही अधूरी थी अतः संपूर्ण या अधूरी सृष्टि का ही निर्माण हो पाया तो ईश्वर को नित्य रहने की क्या आवश्यकता है ? क्यों कि अब नित्य - प्रतिदिन सृष्टि कहाँ बनानी है ? और यदि नित्य-प्रतिदिन बनाता ही जाता है तो प्रथम बार इच्छा मात्र से संपूर्ण सृष्टि बन गई - ऐसा तो कह ही नहीं सकते
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