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२ इन्द्रियवाले ३ इन्द्रिय वाले ४ इन्द्रियवाले कृमि-केंचुए चींटी मकोड़े मक्खी-मच्छर
नारक
तिर्यंच मनुष्य | | जलचर स्थलचर खेचर
देव |
१५कर्मभूमिज ३० कर्मभूमिज
५६ अंतपिज
भुवनपति व्यंतर ज्योतिष्क
वैमानिक
७ नरक के नारकीय जीव इस प्रकार संक्षिप्त तालिका देखने पर पता चलेगा कि समस्त ब्रह्मांड में बसी हुई जीव सृष्टि इतनी ही है - इतने प्रकार की है . सूक्ष्म और स्थूल शरीरादि वाले तथा पर्याप्त और अपर्याप्त आदि सभी मिलाकर कुल ५६३ प्रकार के जीव समस्त ब्रह्मांड में हैं । न इन से अधिक हैं न न्यून हैं . चार गतियों में विभाजन करने पर इनकी संख्या इस प्रकार है - ३०३+१९८+४८+१४ =५६३ प्रकार के जीव इस संपूर्ण जगत में हैं । इनके सिवाय अन्य कोई भी जीवसृष्टि नहीं हैं । इतने जीवों में पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति के सभी सूक्ष्म और स्थूल जीवों को समावेश हो जाता है । इन सभी में जीवत्व है, प्राण है उनकी स्वयं की आयु है और वह आयुष्य संबंधित कर्म जीव अपने पूर्व-पूर्व जन्म से उपार्जित करके आते हैं और इस जन्म में उतने काल तक जीवित रहते हैं । अपने अपने शरीर की रचना करते हैं । पृथ्वी पानी अग्नि वायु वनस्पति के रुप में विख्यात ये जीव जगत के उपयोग में आते हैं । मानव इनका उपयोग करता है । जब यह जीवसृष्टि आयुष्यकाल समाप्त करके देह त्याग कर चली जाती है तब अवशिष्ट रहे हुए उनकी काया के पुद्गल परमाणु जो जड होते हैं उन्हें हम पंच महाभूत के रुप में मानते हैं । पृथ्वी -पानी-अग्नि-वायु आकाश इन पाँचों को पंच महाभूत की संज्ञा दी गई है । इन में से वनस्पति को अलग रखा है । ये पाँचो ही महाभूत जड़ है, परन्तु यह जड़ कब कहलाए ? जब ये जीव अपने अपने देह का परित्याग करके चले गए और उनके कलेवर के रुप में निर्जीव काया मात्र रह गई, जब
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