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अतः मनःपर्यवज्ञानी ही ईश्वर की इच्छा को जान सकते है और प्रत्यक्षानुभूति कर सकते हैं अब रही बात सृष्टिरचनानकी । ईश्वर न दिखाई देने पर भी किस प्रकार कार्य करता है । जिसमें उसका स्वरूप देखने में न आता हो, परन्तु वह जिस कार्य की रचना करता है, वह तो अदृश्य नहीं हो सकता । वह तो दृश्य ही हो सकता है न ? इच्छा मात्र से जादूगर की भाँति स्वीकार करने की यदि बात हो, तो जिस प्रकार जादूगर एक जादू करके दिखाता है, उसमें प्रयोग अदृश्य दिखाई पड़ता है और अंत में कार्य द्दश्य हो जाता है, तो क्या ईश्वर भी इसी प्रकार से काम करता है ? जादूगर किसी लड़की को काट कर ६-७ टूकड़े करके दिखाता है, परन्तु काटने की क्रिया का रहस्य दृष्टिगोचर नहीं होता, कटे हुए अंग जरुर दिखाई देते हैं । इस हाथ की चालाकी का रहस्य भल- भलों के दिमाग में नहीं आ सकता है । तो क्या यहाँ सृष्टि रचनाके क्षेत्र में भी ईश्वर के विषय में ऐसा ही समझें ? किया जाता हुआ काम दिखाई दे या हो जाने के बाद का कार्य दिखाई दे ? न्याय वैशेषिक दार्शनिकों ने तो जो कार्य हो चुका हो उसे देखकर कारण के अनुमान रूप में इस कार्य का कर्ता ईश्वर होगा ऐसा मान लिया है । कार्य के पीछे कारण का होना आवश्यक है । 'कार्य नियतपूर्ववृत्तित्वं कारणम्' कार्य की ठीक पृष्ठभूमि में जो रहे वह कारण- इस नियम के अनुसार भी पृथ्वी - पर्वत वृक्ष, पत्रादि सृष्टि रूप कार्य के पीछे ईश्वर को ही कारण मानने की जरुरत कहाँ पड़ी ? क्या ईश्वर नियतपूर्ववृत्ति है ? या वृक्ष-पत्रादि का अपना जीव प्रथम दृष्टि से पूर्व नियतपूर्ववृत्ति है ? ईश्वर और जीव- इन दोनों में से कार्य के अधिक निकट कौन हैं ? न्यायवैशेषिकादि जगत्कर्तृत्ववादी दार्शनिकों की इस विषयमें गंभीर भूल यह हुई है कि उन्होंने उन उन वृक्ष-पान पृथ्वी आदि के अपने स्वरुप के जीवों को स्वीकार ही नहीं किया । उनमें भी जीवत्व है, वे भी जीवधारी है और उनका प्रत्येक का जीव
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ही स्वयं हवा - पानी आदि लेकर विकसीत होता है बढ़ता है, विशाल स्वरूप धारण करता है, उसकी जितनी अवगाहना संभव होती है, उतना ही वह बढ़ता है। यह बात उन्होंने स्वीकार ही नहीं की है ।
पृथ्वी में भी पृथ्वीकायिक जीव है, वे पार्थिव जीव अपने शरीर की रचना पत्थर - मिट्टी आदि के रूप में करते हैं । पानी को अपकायिक जीव कहते हैं । अपकायिक जीवों का शारीरिक स्वरूप पानी है । वह जीव सूक्ष्म स्वरूप में आकर उसी में जन्म लेता है । अग्निकायिक जीव अग्नि में जन्म लेते हैं । हवा भी वायुकायिक जीवो का समूहात्मक पिंड है । उसमें भी वायुकायिक सूक्ष्म जीव हैं।
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