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________________ इस जगत का कोई कर्ता-सृष्टा रचयिता है और वह एक ही है, वही सर्वव्यापी है, वही स्ववश है, और वह नित्य है ऐसा कहने वाले जो अन्य तार्कीक हो. उन्हे ही ये विडम्बनाएँ है, जिनके प्रभु पूज्य नहीं, अनुशासक नही । इस श्लोक में मुख्य पाँच विशेषण देकर अन्य कुतीर्थियो के द्वारा मान्य ईश्वरवादी की समीक्षा की गई हैं। .. समान्यतः ईश्वरवादी जो कि जगतकर्तत्ववादी के नाम से पहिचाने जाते हैं उनकी मान्यता ऐसी है कि यह जगत जिसके द्वारा बनाया गया है वही ईश्वर है, वह ईश्वर एक ही होता है दो चार नहीं, और वह सर्वव्ययापक होता है . उसका स्वरूप व्यापक है । वह सस्ववश है और सदैव-नित्य रहनने वाला है । ईश्वर के स्वरूप का वे ऐसा वर्णन करते हैं । उनका कथन है कि उवीर्यर्वततर्वा दिंक सर्व बुद्धिमत्कर्तृक कार्यत्वाद . अथवा (क्षित्यंकुरादिकं सकर्तृक कार्यत्वात् घटवत्) यद् यत्कार्य तत्तत्सर्व बुद्धिमत्कर्तृक यथा घट तथेद तस्मात त्था ! यच्च बुद्धिमांस्तत्कर्ता समकानीश्वर एवेति । अर्थात् पृथ्वी, पर्वत् वृक्ष-पत्ते आदि सब कार्य स्वरूप होने से किसी न किसी बुद्धिमान् - निपुण कर्ता के द्वारा कृत हैं अथवा पृथ्वी बीज, अंकुर आदि सब घड़े की भाँति कर्तायुक्त सकर्तृक है । जैसे घड़ा एक कार्यस्वरूप है उसी प्रकार पृथ्वी-पर्वतादि सब कार्य स्वरूप हैं और कार्य का कारण तो अवश्य होना ही चाहिये इस न्याय से इस पृथ्वी पर्वतादि के कार्य का कारण ईश्वर है । जिस प्रकार घड़े का कर्ता कुम्हार है, कुम्हार के बिना घड़ा नहीं बनता उसी प्रकार ईश्वर के बिना इतनी विशाल पृथ्वी - पर्वतमाला आदि बनते ही नहीं । अतः कार्य के पीछे कारण तो मानना अनिवार्य हो जाता है । इस न्याय से भी पृथ्वी - पर्वतादि कार्य स्वरूप दिखाई देते हैं, और उनका कोई दृश्यमान कर्ता - रचयिता दृष्टिगोचर होता नहीं, अतः ईश्वर की ही कल्पना की गई हैं । जो जो कार्य होता है वह सब बुद्धिशाली कर्ता के द्वारा ही घड़े के की तरह कृत होता है । उसी प्रकार से इस पृथ्वी-पर्वतादि को भी कार्य मान लेना चाहिये और उसका निर्माण करने वाला कोई बुद्धिमान् निर्माती कर्ता है - बस वही भगवान है, वही ईश्वर है । कर्तापन कितना न्यायसंगत है ? 254
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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