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________________ संभव हीं हैं . हाँ. जो जो सशरीरी हैं वे अवश्य कर्ता हैं क्योंकि कार्य करते हैं। ईश्वर सशरीरी होने ही चाहियं क्यों कि वे सृष्टि निर्माणादि कार्य करते हैं। इस प्रकार ईश्वरवादी दोनों ओर से फँसते है, क्योंकि अशरीरी मानते हैं, तो सृष्टि कार्य-कर्ता सिद्ध नहीं हो सकते, और सशरीरी मानते हैं तो यह सिद्ध नहीं कर सकते कि कैसा शरीर ईश्वर का है ? साथ ही सशरीरी मानलें हैं तो सर्वव्यापकता भी हाथ में से निकल जाती है, अब क्या करें, फेंस गए न ? तब क्या ईश्वर वंद्यापुत्र की तरह असत् कल्पना रूप सिद्ध होंगे या क्या ? शरीर पक्ष का ही निर्णय न हो तो फिर ईश्वर का ही निर्णय निराधार लटकती हुई तलवार जैसा रह जाएगा और ईश्वर की ही सिद्धि न होतो सृष्टि की सिद्धि, और सृष्टि कर्ता की सिद्धि आदि कैसे संभव हो सकेगी ? एक ओर बाघ और दूसरी और खाई जैसी इनकी स्थिति हो गई है और अंतमें आकाशादि की भाँति ईश्वर की अशरीरी अवस्था सिद्ध होगी तो सृष्टि निर्माण कार्य हेतु सिद्ध नहीं होगा और यदि शरीर सिद्ध नहीं होगा तो इच्छा की सिद्धि कैसे हो पाएगी ? और इच्छा - या शरीर के बिना ईश्वर अखिल विश्व का कर्ता भी कैसे सिद्ध होगा ? अर्थात् जगत्कर्ता के रूप में इसका अस्तित्व ही उड़ जाएगा, टिक नहीं सकेगा ? ईश्वर के शरीर कर्ता स्वयं ईश्वर को ही मानें या किसी अन्य को माने ? क्यों किसी अन्य ने बताया ? तो वह बनाने वाला अन्य कौन था ? दूसरे का अस्तित्व कहाँ से आया ? उसे किसने बनाया ? किसी तीसरे ने ? तो उस तीसरे को किसने बनया ? क्या किसी चौथे ने ? इसी प्रकार तो अंत ही नहीं आएगा और अनवस्था दोष रह जाएगा - तो यह तर्क भी नहीं टिकता । हेम चंद्राचार्य का कथन - कलिकाल सर्वज्ञ पूजनीय हेमचन्द्राचार्य महाराजा अन्ययोग व्यवच्छेद द्वात्रिंशिका के छठे श्लोक में ईश्वरवाद की समीक्षा करते हैं और पूज्य टीकाकार मल्लिषेणसूरि महाराज विवरणमें लिखते हैं कि कर्ताऽस्ति कश्चिज्जगतः स चैकः स सर्वगः स स्ववशः स नित्य :। इमा कुहेवाक विडम्बनाः स्युस्तेषां न येषामनुशासकस्त्वम् ॥६॥ 253
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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